मैं अपने देशवासियों के साथ-2 विश्व भर के उन मानवों, जो सत्य का हृदय से स्वागत करने, उसकी खोज करके विश्व शान्ति स्थापित करने हेतु, सबके भौतिक व आध्यात्मिक विकास की इच्छा रखते हैं, से निवेदन करना चाहता हूँ कि मैं इस समय ऋग्वेद के ब्राह्मण ग्रन्थ ऐतरेय ब्राह्मण जो महाभारत काल से बहुत पूर्व महर्षि ऐतरेय महीदास द्वारा रचित है, का वैज्ञानिक भाष्य कर रहा हूँ। सम्भवतः (मेरी जानकारी के अनुसार) इस प्रकार का भाष्य विश्व में प्रथम बार हो रहा है। यह भाष्य अधिकतम विक्रम सं. 2073 व ईस्वी सन् 2016 तक पूर्ण होने की पूर्ण आशा है। इसके द्वारा मैं वर्तमान भौतिक विज्ञान की नई अनसुलझी समस्याओं यथा- मूलकण का स्वरूप व इसकी उत्पत्ति का विज्ञान, विद्युत् आवेश की सर्वप्रथम उत्पत्ति का विज्ञान व स्वरूप, मूल बलों का स्वरूप व इसका उत्पत्ति विज्ञान, गुरुत्व बल का उत्पत्ति विज्ञान व स्वरूप, स्पेस व काल का विचार, सृष्टि उत्पत्ति के बिग बैंग माॅडल की कल्पना को ध्वस्त करके अनादि मूल पदार्थ से सृष्टि प्रलय-प्रवाह के अनादि चक्र का सिद्धान्त, तारों व गैलेक्सियों की उत्पत्ति का अद्भुत् विज्ञान, वैदिक मंत्रों के ईश्वरीय होने और इनसे ही सृष्टि के उत्पन्न होने का अद्भुत् विज्ञान, वैदिक संस्कृत भाषा के ब्रह्माण्डीय भाषा होने का विज्ञान, ऊर्जा व द्रव्यमान की कई गम्भीर समस्याओं का समाधान, ऊर्जा व द्रव्यमान की उत्पत्ति का विज्ञान, ब्लैकहोल की आधुनिक अवधारणा के स्थान पर भारतीय खगोलशास्त्री प्रो. आभास कुमार मित्रा के म्ब्व् माॅडल के समर्थक वैदिक मत का दृष्टिकोण, सृष्टि निर्माण व संचालन में चेतन परमात्मा-तत्व की आवश्यकता व उस तत्व का वैज्ञानिक स्वरूप। मंै इन इतने विषयों पर आधुनिक भौतिक विज्ञान को ऐसा गम्भीर वैदिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण देना चाहता हूँ, जिस पर विश्व के महान् भौतिक विज्ञानी आगामी कई दशक तक शोध कर सकें। मैं अधिकतम महाशिवरात्रि वि.स.2077 (ईस्वी सन् 2021) तक इस कार्य को अन्तिम रूप देकर वेद को ईश्वरीय होने के साथ-2 सम्पूर्ण ज्ञान विज्ञान का मूल स्रोत सिद्ध करने के लिए दृढ़ संकल्प हूँ। मेेरे इस कार्य में आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानन्द सरस्वती ही मेरे एक मात्र गुरु हैं क्योंकि इन्हीं के साहित्य के संकेतों के आधार पर ही मुझे वैदिक विज्ञान के यथार्थ दर्शन में सहयोग मिलता है। प्राचीन ऋषि भगवन्तों में महर्षि ब्रह्मा, महादेव शिव, भगवान् विष्णु, देवर्शि बृहस्पति, भगवान् मनु, भगवान् श्रीराम, भगवान् श्रीकृष्ण, महर्षि अगस्त्य, महर्षि भरद्वाज, महर्षि वसिष्ठ, महर्षि वाल्मीकि, देवर्षि नारद, महर्षि व्यास, महर्षि कपिल, महर्षि पतंजलि, महर्षि कणाद, महर्षि पाणिनि, महर्षि ऐतरेय महीदास, महर्षि याज्ञवल्क्य आदि अनेकों महर्षियों व देवों के साथ-2 प्राचीन वेद विदुशी माताओं में लोपामुद्रा, गार्गी, भगवती उमा, भगवती सीता आदि अनेक पवित्र माताओं को मैं अपना आदर्श मानता हूँ। मुझे आर्य समाज के क्षेत्र में स्व. आचार्य विशुद्धानन्द मिश्र, स्व. आचार्य प्रेमभिक्षु वानप्रस्थ, स्व. आचार्य सत्यव्रत राजेश, स्व. रामनाथ वेदालंकार के अतिरिक्त श्री स्वामी वेदानन्द सरस्वती (उत्तरकाशी), डा. जयदत्त उप्रेती (अल्मोड़ा) एवं डा. रघुवीर वेदालंकार (दिल्ली) व डा. भवानीलाल भारतीय आदि विद्वानों का स्नेह व प्रोत्साहन मिलता रहता है।
इधर आधुनिक विज्ञान के क्षेत्र में सर आइजक न्यूटन, सर अल्बर्ट आइंस्टीन, रिचर्ड पी. फाइनमैन, मैक्स प्लैंक, चन्द्रशेखर सुब्रह्मण्यम, चन्द्रशेखर वैंकटरमण एवं सत्येन्द्रनाथ बोस जैसे महान् वैज्ञानिकों के प्रति श्रद्धानवत हूँ। वर्तमान में विश्व विख्यात सृष्टि विज्ञानी प्रो. आभासकुमार मित्रा (भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र, मुम्बई) को मैं अपना विशेष निकट प्रेरक व हितैशी मानता हूँ, जिनसे मैंने अपने आधुनिक भौतिकी पर अगस्त 2004 से ही सतत चर्चा करके मार्गदर्शन लेता रहा हूँ। स्पेस सायंटिस्ट प्रो. ए.आर. राव (टाटा इंस्टीट्यूट आॅफ फण्डामेंटल रिसर्च, मुम्बई) पार्टिकल फिजिसिस्ट प्रो. एन.के. मण्डल (हैड, इण्डियन न्यूट्रिनो आॅब्जर्वेट्री, टाटा इंस्टीट्यूट आॅफ फण्डामेंटल रिसर्च, मुम्बई) तथा प्रख्यात ग्रह वैज्ञानिक प्रो. नरेन्द्र भण्डारी (आॅनरेरी सायंटिस्ट, इण्डियन सायंस एकेडमी) से भी कई बार मैत्रीपूर्ण संवाद करके वर्तमान भौतिकी की मूलभूत समस्याओं की जानकारी ली व कई शंकाओं का समाधान भी प्राप्त किया है। इनके अतिरिक्त भी मेरा संवाद सम्पर्क अनेक भौतिकविदों से हुआ है। जिनमें प्रमुख हैं- पद्म भूषण प्रो. अजीतराम वर्मा (पूर्व निदेशक, राष्ट्रिय भौतिक विज्ञान प्रयोगशाला, नई दिल्ली), डा. चचेरकर (पूर्व निदेशक, रक्षा प्रयोगशाला, जोधपुर), प्रो. अशोक अम्बास्था (वैज्ञानिक, सौर वेधशाला, उदयपुर), प्रो. के.सी. पोरिया, भौतिकी विभागाध्यक्ष, द. गुजरात विश्वविद्यालय, सूरत। मैं इन सबका हार्दिक धन्यवाद करता हूँ। मुझे ईश्वर पर अटूट विश्वास है कि उसी की कृपा से मेरा संकल्प अवश्य पूर्ण होगा।