काम यानी सेक्स भारतीय मान्यता के अनुसार चार पुरुषार्थों में से एक है, काम को प्राचीन भारतीय मनीषियों ने देवता के रूप में स्वीकार किया है, दैत्य या शैतान नहीं।
काम का ज्ञान सदैव अनिवार्य रहा है, एवं रहेगा। अल्प अथवा विकृत यौन ज्ञान जीवन सुख से वंचित करने के साथ साथ जीवन विनाश का भी कारण बनता है।
यौन विज्ञान के विषय में प्राचीन भारत का दृष्टिकोण महर्षि वात्स्यायन कृत "कामसूत्र" से स्पष्ट होता है। शिष्ट एवं सरल भाषा में "कामसूत्र" का ज्ञान उपलब्ध कराना ही, वात्यायन फाउंडेशन का एकमात्र लक्ष्य है।
भारतीय विद्वानों ने "कामसूत्र" के रचयिता "वात्स्यायन मुनि" का जीवन काल ईसा की पहली शताब्दी से पांचवी शताब्दी तक माना है। वात्स्यायन ने स्पष्ट शब्दों में यह स्वीकार किया है, कि उक्त ग्रन्थ "कामसूत्र" की रचना "बाभ्रवीय" सिद्धांतों के अनुसार हुयी है।