संतमत की प्रमुख साधना नादानुसंधान यानी सुरत- शब्द योग है। किन्तु उक्त साधना को करने की योग्यता प्राप्त करने के लिए उसके पूर्व दृष्टि - साधन की क्रिया अपेक्षित है। साथ ही इसकी पूर्ववर्ती साधना में मानस जप और मानस ध्यान की क्रिया है। मानस - जप के द्वारा कुछ एकाग्रता प्राप्त कर लेने पर मानस ध्यान करना चाहिए। मानस- ध्यान में भी इष्टदेव की मूर्ति के प्रत्यक्ष दर्शन हो जाने पर दृष्टि - साधन की क्रिया आरंभ कर देनी चाहिए। ये क्रम है; किन्तु इसकी अवधि बतलायी नहीं जा सकती।
जो कोई ईश्वर पर विश्वास करते हैं , उनकी रक्षा ईश्वर अवश्य करते हैं। इसीलिए संतमत ईश्वर पर विश्वास करने का उपदेश करता है।
महर्षि संतसेवी परमहंसजी महाराज
[Commentary:]
दरअसल, सृष्टि का क्रम कुछ इस प्रकार है | सर्वप्रथम, परम प्रभु से नि:सृत मौज के फलस्वरूप शुद्ध चेतन निर्गुण शब्द का मण्डल निर्मित हुआ जिससे नाना अन्य प्रकार के सगुण शब्द तथा प्रकाश के मण्डलों (अरूप तथा रूप ब्रह्माण्डों) का सृजन हुआ | इस क्रम में अंतिम निर्मिति है ये स्थूल ब्रह्माण्ड तथा स्थूल शरीर जिसमें हम बद्ध दशा में निवास करते हैं | मुक्ति – प्राप्ति के लिए हमें वहीं पहुँचना होगा जहाँ से हमारा आगमन हुआ है अर्थात् हमें विपरीत दिशा में आरोहण करना होगा | इसलिए, हमें आरंभ तो वहीं से करना होगा जहाँ या जिस दशा में हम सम्प्रति हैं , अर्थात् स्थूल जगत एवं शरीर से | स्थूल से प्रारंभ करते हुए सूक्ष्म में – सगुण सूक्ष्म रूप/ प्रकाश, सगुण अनहद शब्द – तथा सगुण जड़ अरूप (शब्द) से निर्गुण चेतन शब्द में और अंततः सगुण-निर्गुण-पर शब्दातीत, तुरीयातीत पद में प्रतिष्ठित होना होगा |
और, इसीलिए है यह सन्तमत की साधना का क्रम – १) स्थूल सगुण निराकार साधना (मानस जप), २) स्थूल सगुण साकार साधना (मानस ध्यान), ३) सूक्ष्म सगुण साकार साधना (दृष्टि-साधन अथवा बिंदु-ध्यान), ४) सूक्ष्मतर सगुण निराकार साधना (अनहद नाद-साधना), तथा ५) सूक्ष्मतम निर्गुण निराकार साधना (अनाहत नादानुसन्धान
संतमत प्रचार में आप सभी सन्तमत के सभी धर्म प्रेमियों का हार्दिक अभिनंदन = यह सन्तमत प्रचार का जो यह साईड बनाया गया हैं इस साईड को सोचकर समझकर और कुछ सत्संग प्रेमियों के सहयोग से बनाया गया हैं इस साईड में जम्मू कशमिर.देह्ली हरियना. हिमचाल.पंजाब. राजस्थान.गुजरात एवं बम्बई के तथा कुछ युवा ब्रह्मचारी शामिल हैं ! और आपसब भी सादर आमंत्रित हैं ! यह एक ऐसा सनगठन हैं जो सबके मन में एक ही सवाल घर बना कर बैठ गया हैं ! वो हैं! इतने उचे ज्ञान के धनि फीरभी सेवा में गरीब कियों ! हैं।सेवा का भावना सुन्य कियों हैं।ऐसा कियों है। यह विचार दिलोदिमाग से निकलता ही नही हैं ! आज बस इतना ही ! किंतु आपना विचार लिखना ना भूले ! की यह सवाल आपके हृदय में भी सवाल बनकर बैठें हैं। जयगुरु