A piece of literature about RD by one of our Alumni
एक बार सहसा रामधनी की दूकान में बैठ कर मैं मन ही मन गुनगुनाने लगा कि :
अगर तुम न होते
हमें और जीने कि चाहत न होती |
हे महान रामधनी , गर तुम्हारी चाय और सिगरेट न होती,
तो हमें राहत न मिलती |
मेरी नज़र में तुम किसी अवतार से कम नहीं, जिसने हम लोगों के मूड का दारोमदार ले रखा है | सुबह सुबह तुम्हारी चाय कि चुस्की में भगवान् का आशीर्वाद छुपा रहता है | तुम्हारे आश्रम में ही हे अवतारी पुरुष , सुबह से लेकर देर रात्री तक तरह तरह के देवगण नज़र आते हैं |
* हे रामधनी, कल्पनाओं का विमान उड़ाने का तुम एरोड्रम भी हो |
सीमेंट का वो गोल चबूतरा, जो अक्सर दिन में वृक्ष कि छाँव से ढका रहता है, अक्सर मुझे यह सोचने पर बाध्य कर देता है कि प्रतिष्ठित अभियंताओं के बीच कहीं कोई "गौतम बुद्ध " न पनप जाए और तुम्हारे इसी बोधी वृक्ष के नीचे बुद्धत्व न प्राप्त कर ले |
एक - दो लाइन कि श्हय्री मेरे रामधनी में लिखना चाहता हूँ | अर्ज़ करूंगा कि -
तेरे आश्रम में बैठने का जितना लम्बा ड्यूरेशन ,
उतना ही ज़िन्दगी का कम होता टेंशन |
सच कहता हूँ , जैसे ही धीरे धीरे तुम्हारी चाय कि चुस्की लेता हूँ, वैसे ही तनाव दिमाग से बड़े आराम से निकल जाता है | जैसे ही मदहोशगी में तुम्हारी कचोडी और समोसा चबाता हूँ, वैसे ही लगता है कि मै खराब नियति को इसी तरह चबा डालूँगा |
उत्साह और आत्म शक्ति का सृजन जितना तुम्हारे आश्रम ने दिया है, उतना रूम मै बैठकर ज़िन्दगी को नापने वालों के नसीब में कहाँ |
हमारी कामना है कि -
धन बढे , संपत्ति बढे , जीवन खुला सा होए |
चाय बने, सिगरेट बिके , चटकारा और समोसा होए ||
तुम्हारे आश्रम में हम छात्र वृन्द द्वेष विद्वेष से मुक्त हो कर आते हैनौर रस विभोर हो कर जाते हैं | पढाई और ज़िन्दगी कि अनिश्चितता के बीच तुम्हारी चाय ही हमें ऊँगली थामे हमें शान्तिधाम पहुंचाता है
अंत में यही कहना चाहूँगा कि -
ग़म छट जाते, मस्ती कि बढ़ जाती आमदनी |
वक़्त कितना सुन्दर होता , हर जगह अगर तू होती रामधनी
प्रदीप कुमार चौधरी
तेल अभियंत्रण