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मल्टीप्लायर खेती के उत्पादन को पहले साल ५० % तक तथा नियमित इस्तेमाल से धीरे-धीरे हर साल बढ़ाकर सात सालों में तीन गुना तक बढ़ाता है |
मल्टीप्लायर मिट्टी में सूक्ष्म जीवाणुओं की संख्या बढ़ सकें ऐसे वातावरण की निर्मिती करता है |
मल्टीप्लायर की मदद से सूक्ष्म जीवाणुओं की संख्या में प्रचंड बढ़ोत्तरी होने से फसल को आवश्यकता से अधिक मात्रा में भोजन का उपलब्धीकरण होता है परिणामस्वरूप फसल के पत्तों का आकार कम से कम डेढ़ गुना तक बढ़ जाता है |
इस तरह मल्टीप्लायर की मदद से फसलों को संपूर्ण आहार मिलने से पत्तों का रंग डार्क ग्रीन हो जाता है |
कोई भी फसल सूर्य ऊर्जा की मदद से पत्तों पर अपना भोजन तैयार करती है, मल्टीप्लायर के इस्तेमाल के बाद फसल के बड़े आकार के पत्ते ज़्यादा भोजन तैयार करते हैं और डार्क ग्रीन हुए पत्ते दुगुनी मात्रा में भोजन तैयार करते हैं, फलस्वरूप किसान को उत्पादन कम से कम ५०% तक बढ़कर मिलता है |
सूक्ष्म जीवाणुओं की संख्या बढ़ने से मिट्टी भुर-भुरी हो जाती है |
मिट्टी भुर-भुरी हो जाने से उसमे ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ जाती है |
मिट्टी में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ने से धीरे-धीरे मिट्टी के अंदर उपलब्ध हानिकारक विषाणु समाप्त हो जाते हैं |
हानिकारक विषाणु मिट्टी में फसलों की जड़ों के पास रहकर उनका रस शोषण करते हैं | विषाणु समाप्त हो जाने से फसल को मिलनेवाले भोजन की चोरी रुक जाती है |
फसलों को सम्पूर्ण भोजन मिलने से फसलों का कुपोषण नहीं होता |
फसलों का कुपोषण रुकने से फसल बलवान बनती है इसीलिए उस पर कीड़ और रोग का हमला नहीं होता |
मल्टीप्लायर मिट्टी में उपलब्ध खनिज से फसलों को भोजन की उपलब्धता कराता है, इसीलिए रासायनिक खाद डालने की आवश्यकता धीरे-धीरे ख़त्म हो जाती है |
कीड़ और रोग कम होने से तथा रासायनिक खाद का इस्तेमाल कम होने से मानवीय श्रम में बचत होती है परिणामस्वरूप किसान का लागत मूल्य दिन-ब-दिन कम-कम होता जाता है |
मल्टीप्लायर के नियमित इस्तेमाल से रासायनिक खाद के दुष्परिणाम कम होते ही ज़मीन में २ से ३ मीटर नीचे जाकर समाधिस्थ हो चुके केंचुए [ जिन्हें हम मराठी भाषा में गांडूळ तथा गुजराती में अलसिया कहते हैं ] ऊपर आकर पूरी क्षमता से कार्यरत हो जाते हैं |
ज्यादा बरसात में फसल के पत्तों पर करपा रोग आता है | मल्टीप्लायर जिस फसल में इस्तेमाल होगा वहां करपा रोग आने की सम्भावना कम-से कम हो जाती है | अगर आता है तब मल्टीप्लायर का छिड़काव करने से नियंत्रण में आ जाता है |
अधिक बरसात में फसलें अपना भोजन नहीं बना पाती ऐसी स्थिती में फल-फूल गिरने लगते हैं | जिन फसलों में मल्टीप्लायर का इस्तेमाल होता है उन फसलों में भोजन का रिज़र्व स्टॉक होता है इस कारण फल-फूल नहीं गिरते |
लगातार अधिक बारिश के बाद फसल की सफ़ेद जड़ें अकार्यरत हो जाती हैं | ऐसी स्थिती में फसल का बढ़ना , नए फूल का आना , फल बढ़ना इत्यादि रूक जाते हैं | मल्टीप्लायर का इस्तेमाल होनेवाली फसलों में मिट्टी में वाफसा कंडीशन जल्दी आती है तथा नई सफ़ेद जड़ें निर्माण होकर फसल को भोजन की उपलब्धता कराती है |
कुछ फसलें जैसे भेंडी व पपीता इत्यादि में रासायनिक खादों के कारण फल दूर-दूर लगते हैं , मल्टीप्लायर के इस्तेमाल वाली फसलों में फल लगने का अंतर पचास प्रतिशत से कम हो जाता है |
अधिक बरसात में कपास की फसल लाल होकर उत्पादन स्थिर हो जाता है | मल्टीप्लायर के इस्तेमाल वाली फसल में कपास के पत्ते लाल पड़ने की सम्भावना कम से कम हो जाती है तथा मल्टीप्लायर के छिड़काव से लाल होना सुरु हो चुके पत्ते भी हरे हो जाते है |
मल्टीप्लायर के इस्तेमाल से उत्पादन को जम्बो आकार मिलता है इसीलिए बाजार में ज़्यादा पैसा मिलता है |
मल्टीप्लायर उत्पादन के स्वाद को बढ़ाता है | आज रासायनिक खाद के युग में सभी उत्पादन स्वाद विहीन हो गए हैं | मल्टीप्लायर आपके उत्पादन के स्वाद को अप्रतिम बनाता है |
अगर आपका कृषि उत्पादन का खुद का मार्केटिंग है तब आप मल्टीप्लायर से उत्पादित उत्पादन डबल कीमत तक बेच सकते हैं |
मल्टीप्लायर से उत्पादित कृषि उत्पाद का एक बार स्वाद चख लेनेवाला रासायनिक खाद से उत्पादित उत्पाद नहीं खाएगा |
मल्टीप्लायर आपके उत्पादन को आकर्षक एवं मन लुभावन रंग देता है, देखनेवाला उत्पादन को ख़रीदे बिना नहीं रह सकता |
मल्टीप्लायर के नियमित इस्तेमाल से ५ से ७ सालों में
१] खेती में बाहर से रासायनिक खाद नहीं डालना पड़ता | २] ज़हरीली दवाइयों के छिड़काव से मुक्ति मिलती है | ३] खेती का लागतमूल्य बहुत कम हो जाता है | ४] मानवीय श्रम का इस्तेमाल कम हो जाता है | ५] मिट्टी की उपजाऊ क्षमता बढ़ जाती है | ६] हमारी फसल प्रकृति में होनेवाले बदलाव से लड़ने में सक्षम हो जाती है |
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