Meera Madhav Mandir

Panwasa, Maxi Road, Ujjain, 456006
Meera Madhav Mandir Meera Madhav Mandir is one of the popular Religious Organization located in Panwasa, Maxi Road ,Ujjain listed under Religious Organization in Ujjain ,

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'भगवान की भक्ति मेरे जीवन की प्रेरणा शक्ति है, और इसी शक्ति से जीवन की पावन साहित्यिक सरिता में भावना से ओत-प्रोत लहरों के बीच गोता लगाकर जो कुछ भी मैंने प्राप्त किया है उसे उन सभी भक्तों के समक्ष बिखेर दिया जिनसे सदा मुझे श्रद्धा और स्नेह मिलता रहा.'... यह अनमोल वचन मीरा माधव मंदिर की अधिष्ठात्री स्व. लक्ष्मी देवी व्यास "माताजी" ने कहे थे.
परम पूज्यनीया माताजी स्व. लक्ष्मी देवी व्यास का जन्म श्री कृष्ण की विद्यास्थली उज्जैन में दिनांक २२.०७.१९२२ को हुआ था. आप उज्जैन के सुप्रतिष्ठित वकील स्व. श्री राम चंद्र जी की इकलौती संतान थी. आपने स्नातक स्तर की शिक्षा के बाद संगीत रत्न की उपाधि प्राप्त की. पिता की धार्मिक अभिरुचि व भक्तिभावना के कारण बाल्यावस्था से ही भगवान श्री कृष्ण के प्रति आपका रुझान बढ़ता गया.
आपका विवाह स्व. श्री महेंद्र कुमार जी व्यास के साथ अजमेर में हुआ. एकमात्र पुत्री के जन्म के ग्यारह वर्ष पश्चात आप दाम्पत्य जीवन से वंचित हो गयी. इस दुखद घटना के बाद जब आप सामाजिक थपेड़ों एवं झंझावातों के आघात सहन कर रही थी तभी अपने पिता की अकूत संपत्ति का परित्याग करके राज्य सेवा में संगीत शिक्षिका के पद पर कार्य करना आरम्भ किया. और सत्संग के माध्यम से उज्जैन में भगवान श्री कृष्ण के मंदिर निर्माण का संकल्प लिया. आचार्य श्री रामचंद्र जी शास्त्री, संस्थापक श्री गायत्री शक्तिपीठ उज्जैन से आपने विधिवत दीक्षा प्राप्त की. वैधव्य जीवन की कठोर एवं संघर्षपूर्ण परिस्थितियों ने आपको भक्त शिरोमणि मीरा बाई के प्रति सहज रूप से आकर्षित किया और उन्ही की माधुर्य भक्ति को अपने भावी जीवन का आदर्श अंगीकार कर आध्यात्मिक मार्ग पर अग्रसर होती चली गयी.
जीवन पर्यंत आपने मध्यप्रदेश, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, दिल्ली आदि प्रान्तों में भ्रमण करके सत्संग के आयोजन किये और उन्ही के माध्यम से सामाजिक बुराईयों को हटाने तथा महिला उत्थान का कार्य भी संपादित किया. सभी भक्तजन शिष्य व बंधुओ ने तन-मन-धन से मंदिर निर्माण कार्य में सहयोग दिया. सभी के सहयोग एवं त्याग से मंदिर का निर्माण कार्य १९७१ में प्रारंभ हुआ. मंदिर का निर्माण कार्य बहुत सुन्दर हुआ है.
अत्यधिक श्रम से आपका शरीर धीरे धीरे निर्बल होता गया लेकिन उनकी दिनचर्या, प्रभुभक्ति एवं सत्संग में कोई अंतर नहीं पड़ा. अंततः दिनांक १७.०४.२००० को आपने देवलोक को प्रस्थान किया. माताजी की स्मृति में दिनांक ७ मई २००१ को मंदिर परिसर में उनकी प्रतिमा का अनावरण संत श्री कमल किशोर जी नगर द्वारा किया गया.
आज यह मंदिर उज्जैनवासियो के लिए पावन धार्मिक धाम के रूप में प्रतिष्ठित है. यह मंदिर अपनी भव्यता एवं विशालता को संजोये हुए यात्रियों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है जो की माताजी के संकल्प का साकार पुण्य प्रतिक है. हर वर्ष की बुध पूर्णिमा को मंदिर का वार्षिकोत्सव हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है....
हम सभी माताजी के आभारी है की वो हमे कृष्ण भक्ति और सेवा की ये अनुपम भेंट दे कर गयी है.
"वे मूर्ति कर्म में जीती थी, हो परम शांत प्रस्थान किया.
अगणित अनुनय बेकार हुए, निष्ठुर हरी ने कब ध्यान दिया.
दुनिया की आँख मिचोली से वे दोनों आँखे बंद हुयी.
बंधन ठुकराकर तपोमयी, वह आत्मा अब स्वछन्द हुई"...

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