मानव सेवा संघ का प्राकट्य गीता जयंती के शुभ दिन तारीख २७.११.१९५२ को ब्रह्मलीन पूज्यपाद स्वामी शरणानन्दजी महाराज द्वारा हुईA मानव सेवा संघ मानवमात्र का अपना संघ है | इसमें प्रत्येक मत, सम्प्रदाय एवं विचारधारा के भाई-बहिन सम्मलित होकर मानव-जीवन के उद्ददेश्य को पूरा कर सकते है | यह सभी के सर्वतोमुखी विकास में हेतु है | यद्यपि बीज रुप से मानवता मानव-मात्र में विद्यमान है, परन्तु निज विवेक के अनादर तथा प्राप्त बल के दुरुपयोग के कारण आज मानव-समाज की बड़ी शोचनीय दशा हो रही है | इस व्यथा से व्यथित होकर अनन्त की अहैतुकी कृपा से मानव सेवा संघ का प्रादुर्भाव हुआ है | मानव सेवा संघ उन मौलिक सिद्धान्तों का प्रतीक है, जिनको अपनाकर प्रत्येक भाई-बहिन अपना सुधार अपने द्वारा करने में समर्थ हो सकते हैं|
मानव सेवा संघ किसी मत-सम्प्रदाय आदि का आग्रही और विरोधी नहीं है, अपितु साधननिष्ठ होने में जो बाधाएं आती हैं, उनके निवारण का प्रयास करता है | उसका कोई भी परामर्श जीवन-विज्ञान, जीवन-दर्शन एवं आस्था के विरुद्ध नहीं होता, प्रत्युत् जीवन-विज्ञान का आदर करते हुए यह मानवमात्र को कर्तव्यनिष्ठ होने की प्रेरणा देता है, जो लोक-कल्याण का मूल मंत्र है | जीवन-दर्शन का आदर करते हुए यह सभी को देहातीत अविनाशी तत्व से अभिन्न होकर परम स्वाधीन जीवन पाने की प्रेरणा देता है जो आध्यात्मिकता का चरम उत्कर्ष है और आस्था के आधार पर प्रभु-विश्वास को अपना कर जीवन को प्रभु-प्रेम से परिपूर्ण बनाता है जो मानव-मात्र की मौलिक मांग है |