चरामेति की शुरुआत 18 मार्च 2015 को एक भेल के दुकान में घटी घटना से हुआ था, रायपुर पचपेड़ी
नाका स्थित एक भेल की दुकान में सिविल इंजिनियर प्रशांत महतो को सिविल इंजीनियरिंग की किताब से
भेल बनाकर दिया, इस घटना ने उन्हें झकझोर दिया, और 19 मार्च से सोशल मीडिया की मदद
से किताबें मांगने लगे, घर-घर जाकर "रद्दीवाला" बनकर किताबें जमा करने लगे, धीरे -धीरे लोग इस मुहीम
का हिस्सा बनते गए , 2 माह में छत्तीसगढ़ के 24 जिलों समेत देश के 13 राज्यों से बुद्धिजीवियों का एक
समूह बन गया जो मानवता की सेवा निःस्वार्थ भाव से किये जा रहे है |