�जय वाल्मीकि जी �
जिस घर वाल्मीकि न सिमरिए, अमृत प्राणाधार।
सो मसान घर भूमि का,सदा उरे नहीं छार।।
सब वेदों का सार यही है, सब धर्मों के बीच।
जो नर वाल्मीकि न सिमरते, वे नीचन के भी नीच।।
हाथी घोड़े धन घना, चन्द्र मुखी बहु नार।
वाल्मीकि के भजन बिना, दुख पावे संसार।।