च्यवन ऋषि की कहानी
आगरा. ताजनगरी से सौ किलोमीटर दूर मैनपुरी के औंछा इलाके में श्रंगी ऋषि का आश्रम है। यह वही जगह है जहां ऐसी औषधि की खोज हुई थी, जिससे बुजुर्ग च्यवन ऋषि नौजवान हो गए थे। तभी से इसे च्यवनप्राश कहा जाता है।
आज भी यहां ऋषि से जुड़े कुंड, टीले और अन्य चीजें मौजूद हैं। च्यवन ऋषि कुंड में नहाने से आज भी चर्म रोग ठीक हो जाते हैं।
भागवत वक्ता आचार्य जयहिंद बताते हैं कि श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार औंछा 80,000 ऋषियों की तपोस्थली है। जब च्यवन ऋषि यहां तपस्या में लीन थे, तभी राजा शर्याद की पुत्री सुकन्या वहां से गुजर रही थी।
उसने देखा कि दीमक-मिट्टी के टीले में दो गोल-गोल छिद्र दिखाई पड़ रहे हैं जो कि वास्तव में च्यवन ऋषि की आंखें थीं। सुकन्या ने कौतूहलवश उन छिद्रों में कांटे गड़ा दिए। कांटों के गड़ते ही उन छिद्रों से खून बहने लगा।
सुकन्या ने डरते-डरते कहा पिताजी शायद मुझसे कुछ अपराध हो गया है। यह रक्त की धारा ज्योति से निकल रही है। यह देखकर राजा बहुत दुखी हुए। उन्होंने च्यवन ऋषि को अनुनय-विनय के साथ मनाने के लिए अपनी कन्या सुकन्या का विवाह उन्हीं से कर दिया और अपनी राजधानी लौट आए। क्रोधी च्यवन ऋषि की सेवा सुकन्या बड़ी श्रद्धा के साथ करती रही। पति को प्रसन्न करके सुकन्या आश्रम में सुख से रह रही थी। एक बार अश्विनी कुमार आश्रम में आए। च्यवन ऋषि ने उनका स्वागत सत्कार करके उन्हें प्रसन्न किया। फिर आग्रह किया मैं आपको यज्ञ में सोमरस पान का अधिकार दिलवा दूंगा, आप मुझे वृद्धावस्था से छुटकारा दिलवा दीजिए। देवताओं के वैद्य अश्विनी कुमारों ने च्यवन ऋषि को कुंड में स्नान कराया। जब वे तीनों कुंड से बाहर आए तो तीनों का रूप एक सा था।
अश्विनी कुमारों ने आश्रम लौटकर सुकन्या से कहा- देवी तुम अपने पति को पहचान लो।सुकन्या तीनों को देखकर चकित थी। उसने अश्विनी कुमारों की स्तुति की। कुछ समय बीत जाने पर राजा शर्याति यज्ञ का नियंत्रण देने अपनी पुत्री और जमाता च्यवन ऋषि के यहां आए। उन्होंने देखा, वहां एक रूपवान युवक के साथ सुकन्या बैठी है। गुस्से में आकर उन्होंने अपनी पुत्री की निंदा की –तुमने अपने वृद्ध पति का त्याग करके अन्य पुरुष के साथ संबंध जोड़कर मेरे कुल को कलंकित कर दिया है। सुकन्या ने धीरे से कहा- यही मेरे पति च्यवन ऋषि हैं, जिनके साथ विवाह करके आप मुझे यहां छोड़ गए थे। राजा शर्याति प्रसन्न हुए। उन्होंने पुत्री को गले से लगाया। राजा से सोमयज्ञ कराया और उसमें महर्षि च्यवन ने अश्विनी कुमारों को भी सोमरस का पान कराया।