श्री राम भक्ति

Vrindavan, Ayodhya,
श्री राम भक्ति श्री राम भक्ति is one of the popular Religious Center located in Vrindavan ,Ayodhya listed under Hindu Temple in Ayodhya , Religious Center in Ayodhya , Religious Organization in Ayodhya ,

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♥ღ!! श्री कृष्ण शरणम ममः !!
!! श्री कृष्ण शरणम ममः !!
धन अकिंचन का श्री कृष्ण शरणम ममः।
लक्ष्य जीवन का श्री कृष्ण शरणम ममः।
Ƹ̵̡Ӝ̵̨̄Ʒ๑۩۞۩๑♥❄♥Ƹ̵̡Ӝ̵̨̄Ʒ♥❄๑۩۞۩๑Ƹ̵̡Ӝ̵̨̄Ʒ
दीन दुःखियों का, निर्बल जनों का सदा, दृढ सहारा है श्री कृष्ण शरणम ममः।
वैष्णवों का हितैषी, सदन शांति का, प्राण प्यारा है श्री कृष्ण शरणम ममः।
काटने के लिये मोह जंजाल को, तेज तलवार श्री कृष्ण शरणम ममः।
नाम ही मंत्र है मंत्र ही नाम है, है महामंत्र श्री कृष्ण शरणम ममः।
Ƹ̵̡Ӝ̵̨̄Ʒ๑۩۞۩๑♥❄♥Ƹ̵̡Ӝ̵̨̄Ʒ♥❄๑۩۞۩๑Ƹ̵̡Ӝ̵̨̄Ʒ
छूट जाते है साधन सभी अंत में, साथ रहता है श्री कृष्ण शरणम ममः।
साथी दुनिया में कोई किसी का नही, सच्चा साथी है श्री कृष्ण शरणम ममः।
तरना चाहो जो संसार सागर से तो, पार कर देगा श्री कृष्ण शरणम ममः।
शत्रु हारेंगे होगी विजय आपकी , याद रखना है श्री कृष्ण शरणम ममः।
Ƹ̵̡Ӝ̵̨̄Ʒ๑۩۞۩๑♥❄♥Ƹ̵̡Ӝ̵̨̄Ʒ♥❄๑۩۞۩๑Ƹ̵̡Ӝ̵̨̄Ʒ
सुख मिलेगा सफलता स्वयं आयेगी, तुम जपो नित्य श्री कृष्ण शरणम ममः।
पूरे होंगे मनोरथ सभी सर्वदा, जो न भूलोगे श्री कृष्ण शरणम ममः।
दीनबंधु कृपासिंधु गोविन्द के, प्रेम का सिंधु श्री कृष्ण शरणम ममः।
दुःख दारिद्र दुर्भाग्य को मेट कर, देता सौभाग्य श्री कृष्ण शरणम ममः।
Ƹ̵̡Ӝ̵̨̄Ʒ๑۩۞۩๑♥❄♥Ƹ̵̡Ӝ̵̨̄Ʒ♥❄๑۩۞۩๑Ƹ̵̡Ӝ̵̨̄Ʒ
ब्रह्मा-विष्णु-महेश भी प्रेम से, नित्य जपते हैं श्री कृष्ण शरणम ममः।
शेष सनकादि नारद विषारद सभी , रट लगाते हैं श्री कृष्ण शरणम ममः।
मंत्र जितने भी दुनिया में विख्यात हैं, मूल सबका है श्री कृष्ण शरणम ममः।
पानो चाहो जो सिद्धि अनायास है, वे जपें नित्य श्री कृष्ण शरणम ममः।
Ƹ̵̡Ӝ̵̨̄Ʒ๑۩۞۩๑♥❄♥Ƹ̵̡Ӝ̵̨̄Ʒ♥❄๑۩۞۩๑Ƹ̵̡Ӝ̵̨̄Ʒ
भक्त दुनिया में जितने हुए आजतक, सबका आधार श्री कृष्ण शरणम ममः।
लट्टुओं की तरह विश्व के जीव हैं, काम विद्युत का श्री कृष्ण शरणम ममः।
दुष्ट राक्षस डराने लगे जिस समय, बोले प्रहलाद श्री कृष्ण शरणम ममः।
राणा बोले कि रक्षक तेरा कौन है, मीरा बोली कि श्री कृष्ण शरणम ममः।
Ƹ̵̡Ӝ̵̨̄Ʒ๑۩۞۩๑♥❄♥Ƹ̵̡Ӝ̵̨̄Ʒ♥❄๑۩۞۩๑Ƹ̵̡Ӝ̵̨̄Ʒ
बोलो श्रद्धा से, विश्वास से, प्रेम से, कृष्ण श्री कृष्ण श्री कृष्ण शरणम ममः।
प्राणवल्लभ के वल्लभ हैं वल्लभ प्रभु, उनका वल्लभ है श्री कृष्ण शरणम ममः।
दुख मिटाता है देकर सहारा सदा, सुख बढाता है श्री कृष्ण शरणम ममः।
धाम आनंद का, नाम गोविन्द का, सिंधु रस का है श्री कृष्ण शरणम ममः।
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हे राधारानी.....
तेरी रहमत देख कर मेरी आँख भर आती है !!
हाथ उठ ने से पहले ही दुआ कुबूल हो जाती है !!!!
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*.* श्री राधा *.*
राधा श्री राधा रटूं, निसि-निसि आठों याम।
जा उर श्री राधा बसै, सोइ हमारो धाम

जब-जब इस धराधाम पर प्रभु अवतरित हुए हैं उनके साथ साथ उनकी आह्लादिनी शक्ति भी उनके साथ ही रही हैं। स्वयं श्री भगवान ने श्री राधा जी से कहा है - "हे राधे! जिस प्रकार तुम ब्रज में श्री राधिका रूप से रहती हो, उसी प्रकार क्षीरसागर में श्री महालक्ष्मी, ब्रह्मलोक में सरस्वती और कैलाश पर्वत पर श्री पार्वती के रूप में विराजमान हो।" भगवान के दिव्य लीला विग्रहों का प्राकट्य ही वास्तव में अपनी आराध्या श्री राधा जू के निमित्त ही हुआ है। श्री राधा जू प्रेममयी हैं और भगवान श्री कृष्ण आनन्दमय हैं। जहाँ आनन्द है वहीं प्रेम है और जहाँ प्रेम है वहीं आनन्द है। आनन्द-रस-सार का धनीभूत विग्रह स्वयं श्री कृष्ण हैं और प्रेम-रस-सार की धनीभूत श्री राधारानी हैं अत: श्री राधा रानी और श्री कृष्ण एक ही हैं। श्रीमद्भागवत् में श्री राधा का नाम प्रकट रूप में नहीं आया है, यह सत्य है। किन्तु वह उसमें उसी प्रकार विद्यमान है जैसे शरीर में आत्मा। प्रेम-रस-सार चिन्तामणि श्री राधा जी का अस्तित्व आनन्द-रस-सार श्री कृष्ण की दिव्य प्रेम लीला को प्रकट करता है। श्री राधा रानी महाभावरूपा हैं और वह नित्य निरंतर आनन्द-रस-सार, रस-राज, अनन्त सौन्दर्य, अनन्त ऐश्‍वर्य, माधुर्य, लावण्यनिधि, सच्चिदानन्द स्वरूप श्री कृष्ण को आनन्द प्रदान करती हैं। श्री कृष्ण और श्री राधारानी सदा अभिन्न हैं। श्री कृष्ण कहते हैं - "जो तुम हो वही मैं हूँ हम दोनों में किंचित भी भेद नहीं हैं। जैसे दूध में श्‍वेतता, अग्नि में दाहशक्ति और पृथ्वी में गंध रहती हैं उसी प्रकार मैं सदा तुम्हारे स्वरूप में विराजमान रहता हूँ।"

श्रीराधा रासेशवारी , रसिकेश्वर घनश्याम। करहुँ निरंतर बास मैं, श्री वृन्दावन धाम॥

वृन्दावन लीला लौकिक लीला नहीं है। लौकिक लीला की दृष्टी से तो ग्यारह वर्ष की अवस्था में श्री कृष्ण ब्रज का परित्याग करके मथुरा चले गये थे। इतनी लघु अवस्था में गोपियों के साथ प्रणय की कल्पना भी नहीं हो सकती परन्तु अलौकिक जगत में दोनों सर्वदा एक ही हैं फ़िर भी श्री कृष्ण ने श्री ब्रह्मा जी को श्री राधा जी के दिव्य चिन्मय प्रेम-रस-सार विग्रह का दर्शन कराने का वरदान दिया था, उसकी पूर्ति के लिये एकान्त अरण्य में ब्रह्मा जी को श्री राधा जी के दर्शन कराये और वहीं ब्रह्मा जी के द्वारा रस-राज-शेखर श्री कृष्ण और महाभाव स्वरूपा श्री राधा जी की विवाह लीला भी सम्पन्न हुई।

गोरे मुख पै तिल बन्यौ, ताहिं करूं प्रणाम। मानों चन्द्र बिछाय कै पौढ़े शालिग्राम॥

रस राज श्री कृष्ण आनन्दरूपी चन्द्रमा हैं और श्री प्रिया जू उनका प्रकाश है। श्री कृष्ण जी लक्ष्मी को मोहित करते हैं परन्तु श्री राधा जू अपनी सौन्दर्य सुषमा से उन श्री कृष्ण को भी मोहित करती हैं। परम प्रिय श्री राधा नाम की महिमा का स्वयं श्री कृष्ण ने इस प्रकार गान किया है-"जिस समय मैं किसी के मुख से ’रा’ अक्षर सुन लेता हूँ, उसी समय उसे अपना उत्तम भक्ति-प्रेम प्रदान कर देता हूँ और ’धा’ शब्द का उच्चारण करने पर तो मैं प्रियतमा श्री राधा का नाम सुनने के लोभ से उसके पीछे-पीछे चल देता हूँ" ब्रज के रसिक संत श्री किशोरी अली जी ने इस भाव को प्रकट किया है।

आधौ नाम तारिहै राधा।
र के कहत रोग सब मिटिहैं, ध के कहत मिटै सब बाधा॥
राधा राधा नाम की महिमा, गावत वेद पुराण अगाधा।
अलि किशोरी रटौ निरंतर, वेगहि लग जाय भाव समाधा॥

ब्रज रज के प्राण श्री ब्रजराज कुमार की आत्मा श्री राधिका हैं। एक रूप में जहाँ श्री राधा श्री कृष्ण की आराधिका, उपासिका हैं वहीं दूसरे रूप में उनकी आराध्या एवं उपास्या भी हैं। "आराध्यते असौ इति राधा।" शक्ति और शक्तिमान में वस्तुतः कोई भेद न होने पर भी भगवान के विशेष रूपों में शक्ति की प्रधानता हैं। शक्तिमान की सत्ता ही शक्ति के आधार पर है। शक्ति नहीं तो शक्तिमान कैसे? इसी प्रकार श्री राधा जी श्री कृष्ण की शक्ति स्वरूपा हैं। रस की सत्ता ही आस्वाद के लिए है। अपने आपको अपना आस्वादन कराने के लिए ही स्वयं रसरूप श्यामसुन्दर श्रीराधा बन जाते हैं। श्री कृष्ण प्रेम के पुजारी हैं इसीलिए वे अपनी पुजारिन श्री राधाजी की पूजा करते हैं, उन्हें अपने हाथों से सजाते-सवाँरते हैं, उनके रूठने पर उन्हें मनाते हैं। श्रीकृष्ण जी की प्रत्येक लीला श्री राधे जू की कृपा से ही होती है, यहाँ तक कि रासलीला की अधिष्ठात्री श्री राधा जी ही हैं। इसीलिए ब्रजरस में श्रीराधाजी की विशेष महिमा है।

"ब्रज मण्डल के कण कण में है बसी तेरी ठकुराई।"
"कालिन्दी की लहर लहर ने तेरी महिमा गाई॥"
"पुलकित होयें तेरो जस गावें श्री गोवर्धन गिरिराई।"
"लै लै नाम तेरौ मुरली पै नाचे कुँवर कन्हाई॥"

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*.* श्री कृष्ण *.*

भगवान श्री कृष्ण वास्तव में पूर्ण ब्रह्म ही हैं। उनमें सारे भूत, भविष्य, वर्तमान के अवतारों का समावेश है। भगवान श्री कृष्ण अनन्त ऐश्वर्य, अनन्त बल, अनन्त यश, अनन्त श्री, अनन्त ज्ञान और अनन्त वैराग्य की जीवन्त मूर्ति हैं। वे कभी विष्णु रूप से लीला करते हैं, कभी नर-नारायण रूप से तो कभी पूर्ण ब्रह्म सनातन रूप से। सारांश ये है कि वे सब कुछ हैं, उनसे अलग कुछ भी नहीं। अपने भक्तों के दुखों का संहार करने के लिये वे समय-समय पर अवतार लेते हैं और अपनी लीलाओं से भक्तों के दुखों को हर लेते हैं। उनका मनोहारी रूप सभी की बाधाओं को दूर कर देता है।

श्री कृष्ण स्वयं भगवान हैं, अतएव उनके द्वारा सभी लीलाओं का सुसम्पन्न होना इष्ट है। वे ही सबके हृदयों में व्याप्त अन्तर्यामी हैं, वे ही सर्वातीत हैं और वे ही सर्वगुणमय, लीलामय, अखिलरसामृतमूर्ति श्री भगवान हैं। पुरुषावतार, गुणावतार, लीलावतार, अंशावतार, कलावतार, आवेशावतार, प्रभवावतार, वैभवावतार और परावस्थावतार-सभी उन्हीं से होता है। उनके प्राकट्य में भी विभिन्न कारण हो सकते हैं और वे सभी सत्य हैं। भगवान श्री कृष्ण के प्राकट्य का समय था भाद्रपद अष्टमी की अर्धरात्रि और स्थान था अत्याचारी कंस का कारागार। पर स्वयं भगवान के प्राकट्य से काल, देश आदि सभी परम धन्य हो गये। उस मंगलमयी घटना को हुए पाँच हजार से अधिक वर्ष बीत चुके हैं परन्तु आज भी प्रति वर्ष श्री कृष्ण जी का प्राकट्योत्सव वही पवित्र भाद्रपद मास के पावनमयी कृष्ण पक्ष की मंगल अष्टमी को हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।


मथुरा नगरी के महाराज उग्रसैन भगवान के भक्त थे, ऋषि-मुनियों की सेवा करना एवं अपनी प्रजा का हमेशा हित चाहना उनके लिये सर्वोपरि था। लेकिन उनका पुत्र कंस बहुत ही अत्याचारी था। प्रजा पर अत्याचार करना, ऋषि-मुनियों के यज्ञ में विघ्न डालना उसको प्रसन्नता प्रदान करता था एवं वह स्वयं को ही भगवान समझता था। एक बार उसने अपने पिता को ही बंदी बना लिया एवं स्वयं मथुरा नगरी का नरेश बन गया और प्रजा पर अत्याचार करने लगा, ऋषि-मुनियों के यज्ञ में विघ्न डालने लगा एवं अपने आपको भगवान कहलवाने के लिये मजबूर करने लगा। कंस ने अपनी बहिन का विवाह वासुदेव जी के साथ कर दिया। तभी भविष्यवाणी हुई कि देवकी का आठवाँ पुत्र ही कंस का काल होगा। इससे भयभीत होकर उसने अपनी बहिन देवकी और वासुदेव जी को कारागार में डाल दिया। मृत्यु के भय से उसने देवकी के छ: पुत्रों को जन्म लेते ही मार दिया। देवकी के सातवे गर्भ को संकर्षण कर योगमाया ने वासुदेव जी की दूसरी पत्‍नि रोहिणीजी के गर्भ में डाल दिया। इसके पश्‍चात् भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की मंगल अष्टमी तिथि को श्री कृष्ण जी ने अवतार लिया। बड़-बड़े देवता तथा मुनिगण आनन्द में भरकर पृथ्वी के सौभाग्य की सराहना करने लगे।



उनके नैन इस भव बाधा से पार लगा देते हैं। इसीलिए तो किन्हीं संत ने कहा है: -

मोहन नैना आपके नौका के आकार
जो जन इनमें बस गये हो गये भव से पार


ब्रज गोपिकायें उनके मनोहारी रूप की प्रशंसा करते हुए कहती हैं : -

आओ प्यारे मोहना पलक झाँप तोहि लेउं
न मैं देखूं और को न तोहि देखन देउं

कर लकुटी मुरली गहैं घूंघर वाले केस
यह बानिक मो हिय बसौ, स्याम मनोहर वेस

۞Divine♥.♥Tu Meri Radhey Pyari♥.♥Love۞

नित सेवा मांगूँ श्यामा श्याम तेरी, न भुक्ति नाहीं मुक्ति मांगूँ मैं!
बढ़ें भक्ति निष्काम नित मेरी, न भुक्ति नाहीं मुक्ति मांगूँ मैं!
तोहिं पतित जनन ही प्यारे हैं, हम अगनित पापन वारे हैं!
पुनि कत कर एतिक बेरी, न भुक्ति नाहीं मुक्ति मांगूँ मैं!
यदि कह उन लइ शरणाइ रे, कहू कत पूतना गति पाई रे!
अब बेर न करू करू चेरी, न भुक्ति नाहीं मुक्ति मांगूँ में!
ये भली है बुरी है जो है तेरी है, तुम भी सोचो सचमुच यह मेरी है!
सोचत ही बनि जाय मेरी, न भुक्ति नाहीं मुक्ति मांगूँ में!
तेरी इच्छा में इच्छा बनाती रहूं, तेरे सुख में ही सुख नित पाती रहूं!
बस चाह इहै इक मेरी, न भुक्ति नाहीं मुक्ति मांगूँ में!
बिनु हेतु कृपालु कहाते हो, पुनि क्यों साधन करवाते हो!
सुनु विनय "कृपालु" जू मेरी, न भुक्ति नाहीं मुक्ति मांगूँ में!
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राधा-कृष्ण के प्रेम को एक आदर्श प्रेम
के महान तथा अमर प्रतीक के रूप में
भारत में ही नहीं विदेशों में लोग बड़ेभक्ति भाव से उनकी पूजा-आराधना करते हैं|

Map of श्री राम भक्ति