ॐ
॥ श्री परमात्मने नमः ॥
॥ ॐ नमोः नारायणाय॥
श्रीमद्भगवद्गीता विश्व की महानतम आध्यात्मिक पुस्तकों में से एक उव्च श्रेणी की पुस्तक है। श्रीमद्भगवद्गीता ७००(सातसौ) छंदों को, १८ (अठारह) अध्यायों में समाहित, ३ खंडो में विभाजित और प्रत्येक खंड में ६ (छह) अध्याय अर्थपूर्ण ढंग से एकत्रित करके रचा गया है। श्रीमद्भगवद्गीता धर्मग्रंथ आध्यात्मिक ज्ञान के मूल तत्वों को सुनीयोजित ढंग से प्रकाशित करता है।
"श्रीमद" का प्रयोग "भगवद गीता" के शीर्षक के रूप में इसकी महानता और आदर के लिए किया जाता है। शब्द "भगवद" का अर्थ "परमेश्वर" तथा "गीता" का अर्थ "गीत" होता है, इसिलिये श्रीमद्भगवद्गीता को भगवान् का गीत भी कहा जाता है।
श्रीमद्भगवद्गीता का सन्दर्भ, परंब्रम्ह श्री कृष्ण तथा पांडवा राजकुमार श्री अर्जुन के बीच हुए संवाद से है, जो कुरुछेत्र की रणभूमि में महान धर्मयुध्य आरम्भ होने के पहले हुआ है। श्रीमद्भगवद्गीता भटके हुए को सही दिशा, उलझे हुए को उत्तर तथा सम्पूर्ण प्राणिओं को स्थिर बुद्धि प्रदान करता है।
श्रीमद्भगवद्गीता का प्रमुख उद्देश्य; सम्पूर्ण मानवजाति को आध्यात्म का यथार्थ ज्ञान समझाना; ईश्वर में विश्वास तथा स्नेह ही सर्वोच्व महानतम परिपूर्ण स्तिथि है, का ज्ञान कराना; के द्वारा आत्मा को प्रकाशित कर जीव का उद्धार करना है।
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|| हरिः ॐ तत्सत् ||