Maa Narmada Panchkoshi Parikrama, Bheraghat

829/1, golbazar, Jabalpur, 482002
Maa Narmada Panchkoshi Parikrama, Bheraghat Maa Narmada Panchkoshi Parikrama, Bheraghat is one of the popular Religious Organization located in 829/1, golbazar ,Jabalpur listed under Church/religious organization in Jabalpur , Religious Organization in Jabalpur ,

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More about Maa Narmada Panchkoshi Parikrama, Bheraghat

- परिक्रमा पथ में लाखोों वर्ष पुिाने तीथष स्थलो का ववविण -
एवों नमषदा पोंचकोर्ी परिक्रमा का महत्व
1. भगवान श्री बद्रीनाथ जी बंद्रद्रकाआश्रम द्रिमालय से मााँ नममदा के पावन तट भेड़ाघाट
में तपस्या करने आए, जब उन्हंने पीछे मुडकर देखा तह िजारहं साधु-संत उनके पीछे चले
आ रिे थे, उनके मुख सेद्रनकल पड़ा यि कैसा भेड़ह जैसा झुण्ड़ बनाकर आयेिह, तभी से
इसका नाम भेड़ाघाट पड़ गया। आज भी यि मान्यता िै, द्रक द्रिमालय के िजारह संत,
अद्रिरीरी आत्माऐं, दृश्य अदृश्य रूप में नममदा के तट पर तपस्या करते देखी जा सकती िै,
द्रसद्ध साधकह एवं यहद्रगयहं के कमण्ड़ल आपस में टकराते िै, नममदा पंचकहषी पररक्रमा
करते समय इनकी आवाजें पररक्रमावाद्रसयहं एवं साधकगणहं कह सुनाई पड़ती िैं।
2. िरेकृ ष्ण आश्रम, बेनगंगा पुल के पास बाणासुर नाम के राक्षस द्वारा अनाद्रद काल में
प्रद्रतद्रदन करहड़ह द्रिवद्रलंग का द्रनमामण द्रकया जाता था, वि सब द्रिवद्रलंग गंगा मैया में
प्रवाद्रित करने का द्रनश्चय द्रकया, तब भगवान िंकर ने आिीवाद द्रदया द्रक जिां तुम बाण
मारहगे, विी से गंगा मैया प्रगट िहगी, तभी से इस नदी का नाम बाणगंगा पड़ा, यि आगे
जाकर मााँनममदा में संगम िै।
3. पंचवटी का पुण्य क्षेत्र िै यिां अजुमन के पांच वृक्ष िहने के कारण इसका नाम पंचवटी
पड़ा। जिां िहल्कर राज्य इन्दौर की मिारानी आद्रिल्या बाई द्वारा द्रिवद्रलंग की स्थापना
नममदा के बीचह बीच पवमत द्रिखर पर की गई।
4. यिां द्रदव्य ऐद्रतिाद्रसक श्वेत, श्याम, काला, नीलवणम, माबमल्स की सैकड़ह फु ट ऊॅ ची-
ऊॅ ची चट्टानह कह भेदती हुई मााँ नममदा ने अपना रास्ता बनाया िैं, द्रजसका नाम बंदरकू दनी
किा जाता िै। पूरे भारत देि का नक्शा फहटह लेने पर बनता िैं। प्रत्यक्ष रूप में देखने पर
इसके सौन्दयम के आगे ताजमिल भी फीखा िैं।
5. श्री दत्तात्रेय भगवान की गुफा िै, जह बन्दरकू दनी के पास स्स्थत िैं। यिां उन्हंने
साधना की थी।
6. यि क्षेत्र आद्रद िंकराचायम, पूज्य गौरीिंकर जी मिाराज, दादा ठनठनपाल, दादा धुनी
वाले, मघ्घािाि बाबा, नानक देव जी, परिंस तहतापुरी जी, सद्रित अभी कु छ दिक पिले के
मिद्रषम मिेि यहगी, ओिह रजनीि जैसे सैकड़हं संतह की तपहस्थली िैं।
7. आगे बहुत बड़ा क्षेत्र िै, जिां करहड़ह की संख्या में िंकर जी के द्रिवद्रलंग िै, द्रजन्ें
पूरे देि के लहग लेने आते िै, इनकी प्राण प्रद्रतष्ठा निी की जाती िै, इनका पूजन द्रबना प्राण
प्रद्रतष्ठा के िी फलदायी िै, धीरे-धीरे इनकी आकृ द्रत भी बढ़ती िै।
8. द्रवश्व प्रद्रसद्व चैसठ यहद्रगनी मंद्रदर सैकड़ह सीद्रढ़यह से चढ़कर पवमत द्रिखर पर स्थाद्रपत
िै, जिां औरंगजेब द्वारा मूद्रतमयह कह तहड़ा जा रिा था, तभी एक मूद्रतम में से दुध एवं खून की
धारा द्रनकलने लगी, वि घबराकर वाद्रपस चला गया, आज भी इसके आगे के मंद्रदर सुरद्रक्षत
िैं।
9. नाथ संप्रदाय की यि तपस्थली रिी िै, गुरू गहरखनाथ एवं उनके गुरू मछे न्द्रनाथ ने
यिां तपस्या कर द्रसद्रद्वया पाई थी।
10. रानी दुगामवती द्वारा 20 द्रकलहमीटर लम्बी सुरंग का द्रनमामण द्रकया गया था। द्रजससे
रानी दुगामवती अपने मिल से सीधे मााँ नममदा के तट आती थी। जह सुरंग आज भी उसके
अविेि िै।
11. यिा क्षेत्र के खैरमाई मंद्रदर िै, जह पूरे भेड़ाघाट की जनता पर अपनी कृ पा बरसाती
िै।
12. स्वगमद्वारी क्षेत्र िै, द्रजसका अद्रद्वतीय दृश्य िै। जह स्वगम से भी सुन्दर दृस्िगत िहता िैं।
13. द्रवश्व प्रद्रसद्व धुंआधार िै, जिां 50 फीट ऊपर से नममदा का प्रवाि द्रगरता िै, द्रजससे
आज पास का समस्त प्रक्षेत्र जल द्रकरणह के छहटे-छहटे द्रबन्दु िवा में तैरते िै, इनका दृश्य
धुंआ जैसा दद्रिमत िहता िै, इसद्रलए इसे धुंआधार किा जाता िैं।
14. भद्रटया वाली माई पराम्बा भुवनेश्वरी भवानी का तांद्रत्रक द्रसद्वपीठ िै, जिां राजा कणम
ने द्रविेष पूजा अचमना कराई थी, तभी से राजा कणम के राज्य में धन धान्य की कमी निी हुई
थी, ओर वे सवा मन सहना प्रद्रतद्रदन दान कर भहजन करते थे।
15. पिुपद्रतनाथ ज्यहद्रतमद्रलंग गहपालपुर में स्स्थत िै, जह िजारह वषम पुराना िै, द्रजसके दिमन
करने पर भगवान गणेि, भगवान द्रिव, एवं नागराज देवता के दिमन प्रत्यक्ष रूप से िहते िैं।
ऐसी मान्यता िै, द्रक आज भी नागराज देवता प्रद्रतद्रदन मंद्रदर में भगवान के दिमन करने आते
िै। मंद्रदर द्रिखर पर श्रीयंत्र की स्थापना िैं, जह अद्रद्वतीय िैं।
16. कल्याद्रणका तपहपन नाम से सुप्रद्रसद्व श्रीयंत्र की साधना का सुप्रद्रसद्व क्षेत्र िै, यिां राज
राजेश्वरी भगवती द्रत्रपुर सुन्दरी की साधना द्रनरंतर रूप से चलती िै, यिां से नममदा के सौन्दयम
कह देखने पर दिमक अद्रभभूत िह जाते िैं, चारह वेद, 108 उपद्रनषद् की यिां मंद्रदर में प्रद्रतष्ठा
की गई िै, मिान तपस्वी संत स्वामी कल्याणदास जी द्वारा मंद्रदर कह नममदा तट पर स्थाद्रपत
कराया गया िै। यिां पर द्रिवद्रलंग ओर धुनी स्थाद्रपत िै, यिां तपस्वी लहग पूजन अचमन वंदन
करते रिते िैं।
17. द्रवराट िॉस्िटल (िास्िस) एक द्रचद्रकत्सालय िै, जिां मृत्यु के क्षणह पर रहद्रगयह कह
लाकर उनकी सेवा की जाती िै।
18. प्रद्रसद्व द्रतलभांडेश्वर मंद्रदर िै, यिा ऐसी मान्यता िै िर मकर संक्राद्रत कह इनका
आकार बढ़ता िै, द्रजससे उनका श्रंगार द्रगर जाता िै।
19. देववप्पा आश्रम स्थाद्रपत िै, जिां रहद्रगयह कह दवाई दी जाती िैं।
20. लम्हेटाघाट में स्स्थत (फाद्रसल्स) लकड़ी जह पत्थर में पररवद्रतमत िह गई, द्रजसका
वैज्ञाद्रनक पररक्षण करने पर इनकी उम्र 30 लाख साल पुरानी पाई गई िै। इससे ज्ञात िहता
िै द्रक मााँ नममदा द्रकतनी पुरानी िैं।
21. लम्हेटाघाट क्षेत्र में श्रीयंत्र का मंद्रदर स्थाद्रपत िै, जह प्राचीन मंद्रदरह में एक िै, यिां
पूजन अचमन करने से लक्ष्मी की प्रास्ि िहती िै, यि मंद्रदर मााँ लक्ष्मी का प्रतीक भी िैं।
22. लम्हेटाघाट पररक्षेत्र में परमिंस आश्रम िै, यिां रूद्राक्ष के वृक्ष के दिमन द्रकये जा
सकते िै, यिां पर द्रसद्ध साधक द्रनवास करते िै, जह क्षेत्र सन्यास द्रलये हुऐ िैं।
23. पिाड़ी पर जह मंद्रदर स्थाद्रपत िै, जह राजा सागर द्वारा द्रनद्रममत द्रकया गया था।
24. यि क्षेत्र भृगु ऋद्रष की तपहस्थली िैं। इस क्षेत्र कह भृगु क्षेत्र भी किा जाता िै।
35. इस क्षेत्र में बारि वामन अवतार के रूप में भगवान नारायण (द्रवष्णु) प्रगट हुए थे।
इस क्षेत्र कह बलीटीला किा जाता िैं।
36. इसी तीथम में भगवान श्रीराम, भगवान लक्ष्मण, भगवान श्री िनुमान जी मिाराज दहष
मुक्त हुए थे।
37. भगवान श्रीकृ ष्ण अजेय हुए थे, भगवान श्रीकृ ष्ण रूकमणी का द्रववाि भी हुआ था।
38. राजा बली ने इस क्षेत्र में यज्ञ द्रकया था।
39. लम्हेटाघाट से नाव द्वारा नममदा कह पार द्रकया जाता िै।
40. सुप्रद्रसद्ध िद्रन मंद्रदर यिां स्थाद्रपत िैं। जिां तांद्रत्रक पूजा िहती िैं।
41. भगवान श्री राम व लक्ष्मण द्वारा स्थाद्रपत द्रिवद्रलंग द्रजसे‘‘कुं भेश्वर मिादेव मंद्रदर किा
जाता िै, एक द्रजलिरी में दह द्रिवद्रलंग स्थाद्रपत िै, जह द्रवश्व में एक मात्र द्रिवद्रलंग िै, यि
िास्त्रहं का मत िैं। जह द्रक भगवान श्रीराम ने रावण कह मारा था तह उन्े ब्रम्ह ित्या का पाप
लगा इसके द्रनवारण िेतु उन्हंने नममदा तट पर दहष मुक्त हुए थें।
42. देवताओं के राजा इन्द्र ने यिा अपने पूवमजह का श्राद्ध द्रकया था द्रजसका प्रमाण गया
कु ण्ड़ के पास स्स्थत इन्द्र भगवान के वािन ऐरावत (िाथी) के पद द्रचन् िैं।
43. पुराणहं के अनुसार पृथ्वी के राजा मनु ने भी यिां पर अपने द्रपतरहं का श्राद्ध द्रकया था।
44. भगवान श्रीराम व भगवान लक्ष्मण अपने वनवास काल के दौरान नममदा तट पर
उन्हंने द्रकसी का वध निी द्रकया।
45. द्रत्रिुल भेद नाम का तीथम स्थल िै, द्रत्रपुरा नाम के राक्षस कह मारने के द्रलए भगवान
द्रिव ने द्रत्रिुल से द्रत्रपुरा राक्षस का वध द्रकया था, द्रजसके द्रचन् विां पर द्रदखाई देते थे।
इसका इद्रतिास स्कन्ध पुराण में द्रमलता िैं।
46. पूज्य द्रसद्ध संत मिाकाल बाबा की तपह स्थली एवं समाद्रध िैं।
47. पंचकहषी पररक्रमा मागम में ग्राम ढुढवारा में प्राचीन भैरव गढ़ी िै, जिां मिाकाल भैरव
बाबा की अराधना एवं उपासना की जाती िै।
48. न्यू भेड़ाघाट में मााँ नममदा कह देखने पर द्रविगंम दृश्य प्रतीत िहता िैं।
49. द्रसद्धनमाता जी का आश्रम िै, जिां साधक साधना करते िै, पररक्रमावाद्रसयहं की सेवा
िहती िैं।
50. यिां से मााँ नममदा कह नाव द्वारा पार द्रकया जाता िै, द्रजसे सरस्वती घाट किते िै, ऐसी
मान्यता िै, द्रक गुि रूप से सरस्वती मैया यिां नममदा जी से द्रमलती िै, यिी बेनगंगा
(बाणगंगा) का जल द्रमलता िै, नममदा मैया, गंगा मैया (बाणगंगा) एवं सरस्वती मैया का द्रमलन
के कारण इस स्थान कह सगंम स्थली किा जाता िैं।
51. यि क्षेत्र जाबाद्र लऋद्रष की तपह भूद्रम भी रिी िै।
52. यिां से पैदल िरेकृ ष्ण आश्रम बेनगंगा पुल के पास पहुंचकर नममदा पंचकहषी
पररक्रमा पूणम िहती िै, एवं द्रविाल प्रसाद (भण्ड़ारा) के साथ कायमक्रम का आयहजन िहता िैं।
नहट:- प्रत्येक माि की पूद्रणममा कह िरेकृ ष्ण आश्रम बेनगंगा पुल भेड़ाघाट से नममदा पंचकहषी
पररक्रमा का िुंभारभ िहता िै, देवियनी एकादिी से देवउठनी एकादिी तक पररक्रमा का
चतुममास द्रवश्राम िहता िै एवं इसके पश्चात वाद्रषमकहत्सव के रूप में काद्रतमक पूद्रणममा कह
द्रविाल नममदा पंचकहषी पररक्रमा का आयहजन िहता िैं। जह लगातार सन् 1996 से मूतम रूप
देने के बाद जारी िैं।

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