Yogini Mata

Yogini Mata Joginpahari, Jharkhand 814147 India, Pathargama, 814147
Yogini Mata Yogini Mata is one of the popular Hindu Temple located in Yogini Mata Joginpahari, Jharkhand 814147 India ,Pathargama listed under Hindu Temple in Pathargama , Church/religious organization in Pathargama ,

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माता योगिनी की जय !!

माता योगिनी मंदिर,बारकोप ,पथरगामा, गोड्डा झारखंड राज्य स्थीत एक अति प्राचीन और गुप्त स्थान है। इस मंदिर का निर्माण कब हुवा और किसने कराया अति रहष्यात्मक है।
सन ११०० ई० के पुर्व एककृत बंगाल नरेश के समय ईस क्षेत्र में नठ जाति का साम्राज्य था। सन ११०० ई० के आस-पास यहाँ खेतौरी जातियों द्वारा नठ जाति को युद्ध में परास्त कर " तपा बारकोप " का स्थापना किया।तपा बारकोप का कुल क्षेत्रफल १६ कोस का था। उस वक़्त भी माता योगिनी का यह ऐतिहासिक मंदिर यहाँ विराजमान था, इस बात का प्रमाण खेतौरी जातियों का इतिहास तथा विदेशी पर्यटक " सर बुकानन " के पुस्तक से प्राप्त होती है। उस वक़्त इस मंदिर में बाहरी बरामदा नहीं था,जो की बाद में खेतौरी राजा द्वारा बारामदे का निर्माण कराया गया है। कलांतर में तपा बारकोप " रनशी महाल " में तब्दील हो गया और बारकोप को एक जमींदारी स्टेट बनना पड़ा।
रनशी महाल के संचालक सुर्यमोहन सिंह हुवे जो की कायस्थ जाती से थे, उनके द्वारा माता योगिनी को भी जमींदारी स्टेट का दर्जा दिया गया तथा इस मंदिर के संचालन एवं रखरखाव व्यवस्था हेतु माता योगिनी को, परिसम्पत्तियों की मालकिन " जोगिन जी निज " घोषित करते हुवे इसे एक सेवायती संस्था बनाया गया था। जिनका प्रमाण " गेंजर सेटेलमेंट " द्वारा निर्गत पर्चा से प्राप्त होता है।
उस वक़्त श्यामल देवन जो की बनवार जाति से है उन्हें माता योगिनी मंदिर का सेवायत घोषित किया किया गया था, जो की आज भी उनके वंशज इस मंदिर में पंडा है।

श्यामल देवन के मृत्यु उपरांत उनके वंशजो की आर्थिक स्थिती काफी ख़राब हो गयी थी ,जिसके चलते इनके वंशज मंदिर का रखरखाव और संचालन ठिक ढंग से नहीं कर पा रहे थे। उस वक़्त यह मंदिर भी काफी गुप्त थी यहाँ इक्के-दुक्के स्थानिय ग्रामीणों के अलावे कोई भी पूजा तक करने नहीं आते थे ऐसे में इनके वंशजो के लिए माता योगिनी मंदिर का रख-रखाव और संचालन काफी मुश्किल भरा हो गया था। माता योगिनी का मंदिर जिस जगह पर स्थित है वहाँ हाल तक लगभग १९८३ ई० के पूर्व तक किसी मानव का बसो-बास नहीं था, राहगीर उस ओर से दिन के समय भी गुजरने से डरते थे। मंदिर की स्थिती काफी जीर्ण होगयी थी।
कभी कभारकोईघुमक्कड़ तांत्रिक औघड़ या साधु-सन्याशी ईस ओर से अगर गुजरते तो वे इस जगह से आकर्षित हो यहाँ कुछ समय प्रवास जरूर करते थे। उस वक़्त मंदिर को छोड़ दुसरा कोई स्थान नहीं था सोने बैठने के लिए, ऐसे में जो भी साधु-सन्त यहाँ रुकते थे, वो या तो माता मंदिर के बरामदे में ठहरते या माता के पहाड़ की किसी गुफा में रुक ध्यान साधना किया करते थे।

अरे हाँ माता पहाड़ से याद आया कि, पुर्व से ही माता मंदिर के अलावे मंदिर से सटे एक पहाड़ और मंदिर के सामने एक अति प्राचीन वट-वृक्ष है। पहाड़ के चोटी में एक अति दुर्गम गुफा है, जिसका सम्पूर्ण आकार महिला के योनि और गर्भाशय की तरह स्पष्ट है , और वट वृक्ष के संबंध में पूर्वजों के मुख से जो सुना हुँ कि, तांत्रिक-मांत्रिक इस वट वृक्ष पर सवार होकर अमावष्या और पूर्णिमा में रात्री को कामाख्या सिद्धी प्राप्त करने जाया करते थे।
बचपन से ही पूर्वजों द्वारा कही वट वृक्ष संबंधी बातें मेरे मन के अंदर कौतुहल बना हुवा था … भाग्य कर्म से मुझे मौका मिला गुवाहाटी (असम राज्य) स्थित माता कामाख्या मंदिर जाने का। वहाँ जाकर मैंने पाया कि, कमोबेस माता योगिनी मंदिर और यहाँ के पहाड़ स्थीत योनि-गुफा का जरूर और निश्चित कोई-न-कोई संबंध है। मै लगातार उन संबंधो को तार्किक रूप से ढूँढने और जोड़ने के प्रयाश में लगा हुवा हुँ और मुझे उम्मीद ही नहीं पूर्ण विश्वाश है कि माता मुझे अवश्य सफलता देगी। " मानो तो देव, नहीं तो पत्थर "

जैसा कि हम सभी जानते है …. समय एक पहिया है और समय का पहिया घुमता रहता है। समय के साथ माता योगिनी मंदिर के समय में भी बदलाव शुरू हुवा वर्ष १९७६ में एक घुमक्कड़ " पाठक बाबा " नामक औघड़ वहाँ आये और कुछ दिनों के प्रवास उपरांत उन्होंने एक भब्य यज्ञ का आयोजन करवाया, वैसा यज्ञ बहुत विरले देखने और सुनने को मिलता है। उसी यज्ञ के दौरान उन्होंने घोसना ( भविष्यवाणी) किये थे कि इस स्थान का काफी विकाश होगा और दूर-दूर से लोग यहाँ माथा टेकने आएंगे। आज उनके द्वारा कही हर बात सत्य साबित हो रही है। आज उन्ही के अनुयायी में एक उसी बरकोप स्टेट के वंशज तथा पथरगामा कॉलेज के इतिहास विभाग के विभागध्यक्ष एवं पूर्व प्राचार्य श्री आसुतोष सिंह , (देवन-वंशज) पंडा लोगों के साथ खड़े हुवे और पांडा वंशजो के सहमती और सहयोग से निरंतर दिन-रात माता की सेवा में लगे हुवे है। इन्होंने माता की निर्विघ्न सेवा के लिए अपने कॉलेज सेवा से त्याग दे दिया तथा ४३ वर्ष के अल्प अवस्था में ही अपने घर को छोड़कर माता मंदिर में ही रहना प्रारंभ कर दिया। शुरुवात में लोग-समाज और घर - परिवार के सदस्यों ने इन्हे काफी भला-बुरा कहा एवं काफी अपमानित किया, परंतु ये बगैर किसी का परवाह किये,अपने धुन के पक्के निरंतर माता योगिनी की सेवा में लगे रहे। उस दौरान माता योगिनी ने भी इनकी कठिन से कठीन परीक्षायें ली,अनेक प्रकार की अलौकिक यातनाये दी, परन्तु ये अपने संकल्प से कभी विचलीत नहीं हुवे। अंत में माता इनकी सेवा भाव से प्रसन्न हो इन्हे अपने कलेजे से लगा ली .... माँ-बेटे के वात्सल्य प्रेम ने अद्भुत चमत्कार दिखाना प्रारम्भ किया। जिस मंदिर के नाम से लोग दिन में भी डर जाया करते थे, आज वही माता योगिनी मंदिर कमोबेश गोड्डा जिले की पहचान बन गई है। माता मंदिर के साथ-साथ श्री आसुतोष सिंह की भी प्रसिद्धि और ख्याती भारत देश के कई राज्यों में फैली है।

दूर-दूर से अलग-अलग प्रांतो से लोग रोज तादाद में आ रहे है योगिनी माता मंदिर। गोड्डा जिले का प्रसिद्ध सिद्ध पिठ एवं प्रमुख पर्यटक स्थल के रूप में आज पहचान है|

Map of Yogini Mata