उदयपुर (भौमियावाटी ) पैंतालिसे के
नाम से प्रसिद्ध था. काश्तकार
माली भाईयों की हालत सबसे बुरी थी. न
पेट भर रोटी, न कपडा, न मकान और न
किसी का सहारा. कोई भी जनसेवक इस
क्षेत्र में घुस नहीं सकता था.
माली बड़े भयभीत थे तथा खुलकर
अपना रोना भी नहीं रो सकते थे.
उदयपुरवाटी और सीकर जागीर में
किसानों की समस्या ज्यों की त्यों बनी रही.
उनकी मूल समस्या इन दो इलाकों में
भूमि बंदोबस्त था.
उदयपुरवाटी युद्धस्थल बन गयी थी.
गाँव-गाँव व खेत-खेत में झगडे होने
लगे. 1947 -48 के दौरान
उदयपुरवाटी में लड़ाई खेतों से चलकर
घरों तक पहुँच गयी. ओलखा की ढाणी,
रघुनाथपुरा, गिरधरपुरा, धमौरा
आदि में भौमियों और जाटों में संघर्ष
हुआ. 1947 में ही 400 भौमियों ने
हुक्मपुरा गाँव पर आक्रमण किया. गाँव
को लूट लिया और एक किसान हरलाल सिंह
को गोली से उड़ा दिया