“निर्गुणं वामभागे च सव्यभागेऽ द्भुतानिजा। मध्यभागे स्वयं पूर्णस्तस्मै नाथाय ते नमः।।
मनोवागतीतो मनोवाङ्मयश्च नाथः।१। नाथ ।२। शक्तिः।३। कर्ता।४। अकर्ता ।५। एतत्पञ्चकमिति।
अद्वेतोपरिवर्ति नाथ उदितो यत्र ध्वनिः संततो ... “
जिनकी बायीं ओर निर्गुणस्वरूप (ब्रह्म) और दाहिनी और अदभुत निजशक्ति(इच्छाशक्ति परमेश्वरी पराम्बा) विराजमान हैं। और बीच में स्वयं पूर्ण(अलखनिरञ्जन द्वैताद्वैत विवर्जित सर्वधारस्वरूप) विद्यमान हैं, उन श्री आदिनाथ को नमस्कार है ।
१ मन और वाणी से अतीत तथा मन और वाणी से युक्त नाथ, २ नाथ, ३ शक्ति, ४ कर्ता, ५ अकर्ता, यही नाथपञ्चक है।
जहां निरन्तर ॐकार रूप से अतीत सूक्ष्मातिसूक्ष्म अनाहत सहज ध्वनि होती रहती है, वहां अद्वैत से परे परमपद में आदिनाथ विद्यमान रहते हैं। ....
वहीं यह श्री आदिनाथ अखाड़ा, श्रीनाथ आश्रम चरित्रवन बक्सर धाम है। जो जनसामान्य के मानसपटल पर “नाथ बाबा का मन्दिर” नाम से अंकित है। "