Sher shah ka Rauza : bihari taz mahal

sher shah ka Rauza - bihari taz mahal, Sasaram, 821115
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शेरशाह सूरी को वास्तव में भारत के राष्ट्रीय नायकों में से एक समझा जाता है। शेरशाह सूरी (मूल नाम फरीद खान) बहादुर, बुद्घिमान, पैनी राजनैतिक परख रखने के साथ-साथ व्यवहार कुशल सैन्य प्रशासक होने के अलावा नगर प्रशासन में भी असाधारण कौशल और योग्यता रखने वाला व्यक्ति था। उसके पिता, हसन शाह सासाराम के जागीरदार थे। शेरशाह सूरी का जन्म सन 1472 ईसवी में हुआ था और उसने अपनी औपचारिक शिक्षा जौनपुर से प्राप्त की थी। अपनी विशेषताओं के कारण उसने अपने कार्य की शुरूआत एक छोटे जागीरदार के रूप में की और वह मुगल बादशाह, हुमायूँ को हराने के बाद सन 1540 ईसवी में दिल्ली के राज सिंहासन पर बैठा। लेकिन दुर्भाग्य से वह पांच वर्ष की एक छोटी अवधि तक ही शासन कर सका क्योंकि रबी-उल-अवाल के दसवें दिन हिजरी 952 या 13 मई 1545 ईसवी को कालिंजर के किले में एक दुर्घटना में उसकी मृत्यु हो गई।

उसने एक स्वतंत्र राजवंश, सूर-अफगान की स्थापना की। उसने विभिन्न क्षेत्रों में आश्चर्यजनक उपलब्धियां प्राप्त की थी। उसने अपने संपूर्ण साम्राज्य में कानून और व्यवस्था की पुन:स्थापना की और व्यापार और वाणिज्य को बढ़ावा दिया। शेरशाह सूरी ने कोलकाता से पेशावर के बीच चलने वाले पुराने राजमार्ग जिसे ग्रांट ट्रंक रोड़ कहते हैं को फिर से चालू करवाया और आगरा से जोधपुर और चित्तौड़ तक एक सड़क का निर्माण करवाया जो गुजरात बंदरगाह के मार्ग को जोड़ती है और तीसरा मार्ग लाहौर से मुल्तान तक बनवाया जो पश्चिम और मध्य एशिया में जाने वाले काफिलों के लिए था। यात्रियों की सुविधाओं के लिए उसने इन मार्गों पर अनेक सरायों का निर्माण करवाया। इसके अतिरिक्त, उसने 'रूपए' मुद्रा का प्रारंभ किया और एक व्यवस्थित डाक सेवा की शुरुआत की।

शेरशाह सूरी एक महान निर्माता भी था। उसने दिल्ली के निकट यमुना नदी के किनारे पर एक नया नगर बसाया था जिसमें से केवल पुराना किला ही बचा है। इसके भीतर मस्जिद है जो प्रचुर सजावट के लिए जानी जाती है। लेकिन वास्तुशिल्प के क्षेत्र में उसने उत्कृष्ट योगदान सासाराम, बिहार में अपना स्वयं का मकबरा बनवा कर दिया जो सादगी और लालित्य का मिला-जुला रूप है।

इस मकबरे को भारतीय-अफगान वास्तुशिल्प के भव्य नमूनों में से एक समझा जाता है। यह ईंटों से बनी एक शानदार इमारत है जिसमें अंशत: पत्थर लगे हैं और जो लगभग 305 मीटर माप वाले एक भव्य वर्गाकार तालाब के मध्य में पत्थर के एक बड़े चबूतरे पर खड़ी है। 9.15 मीटर ऊंचा चबूतरा, प्राकार-दीवार से घिरा है जिसके चार कोनों पर अष्टकोणीय गुम्बदनुमा मंडप हैं।

चबूतरे के मध्य में मुख्य कब्र अष्टभुजाकार कम ऊँचाई के एक छोटे चबूतरे पर स्थित है। इस भवन में एक बड़ा अष्टकोणीय कक्ष है जिसके चारों ओर 3.10 मीटर चौड़ा एक बरामदा है। अष्टकोण की प्रत्येक भुजा लगभग 17.00 मीटर की है। मुख्य गुम्बद के चारों ओर अष्टभुज के किनारों पर आठ स्तंभवाले गुम्बज लगे हैं। चबूतरे के ऊपर इस मकबरे की कुल ऊंचाई 37.57 मीटर है।

गुम्बद का भीतरी भाग पर्याप्त रूप से हवादार है और दीवारों के ऊपरी भाग पर बनी बड़ी-बड़ी खिड़कियों से रोशनी भी पर्याप्त आती है। पश्चिमी दीवार पर मेहराब के ऊपर छोटे मेहराबनुमा आलों पर दो पंक्तियां लिखी हुई हैं जिन्हें सलीमशाह द्वारा मकबरे के पूरा होने पर जुमदा के सातवें दिन हिजारी 952 (16 अगस्त, 1545 ईस्वी ) में शेर शाह सूरी की मृत्यु के लगभग तीन माह बाद लिखा गया था।

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