हमें गर्व है की हम प्रतापगढ़ी है
हम डरते नहीं किसी से .. न किसी से कम हैं |
अगर हमे मौका मिले तो हम दिखा दें सभी को हम किसी से कम नहीं ...
हम बदल सकते है लोगो की नकारात्मक सोच
जो गलत धारणा बना रखी है लोगो ने
बहुत कुछ है हमारे यहां फिर लोगो क्यू ये लगता है...........?
ये अपने आप में ही इतिहास समेटे हुए है बहुत कुछ है यहाँ----
ये जिला बेल्हा के नाम से जाना जाता है
देवी सती का यहां पर बेला (कमर) का भाग गिरा था बाद में श्रीराम वनगमन के समय देवी बेला की पूजा की जो बाद में बेल्हा देवी के नाम से प्रसिद्ध हुई।
अवध के उत्तरी क्षेत्र बेल्हा में घुइसरनाथ धाम में स्थित बाबा घुश्मेश्वर नाथ मंदिर एक अध्यात्मिक एवं पौराणिक नगरी है । यहां पर और कई पौराणिक मन्दिर स्थित है। जंहा जाने मात्र से ह्रदय पवित्र हो जाता है |
प्रतापगढ़ के रानीगंज अजगरा मे राजा युधिष्ठिर व यक्ष संवाद हुआ था और जिले के ही भयहरणनाथ धाम मे पांडवो न बकासुर के आतंक से मुक्ति दिलाई थी।
इस धरती को रीतिकाल के श्रेष्ठ कवि आचार्य भिखारीदास की जन्म स्थली के नाम से भी जाना जाता है।
भगवान बुद्ध की तपस्थली है ये धरती, धर्मसम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज की भी है ये जन्म स्थली
नाजिश प्रतापगढ़ी जी की वो रचनाएँ आज जी पढ़ के दिल खुश हो जाता है उनका ही ये प्रतापगढ़ है |
1857 की महान क्रान्ति में भी बेल्हा के वीरों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया और अमर क्रातिकारी बाबू गुलाब सिंह ने अपने प्राणो की आहूति दे दी
महात्मा गांधी का ऐतिहासिक भाषण कालाकाँकर में हुआ था।
जनवरी 1920 में सुभाषचन्द्र प्रतापगढ़ में आए 5000 लोगो ने उनका स्वागत किया।
यह ऐसा जिला है जहां से देश के प्रथम प्रधानमन्त्री ने अपनी राजनीति की शुरुआत यही से की
राष्ट्रीय कवि हरिवंशराय बच्चन की भी ये जन्म स्थली है
जगद्गुरु कृपालू महाराज की भी ये जन्मस्थली है कृपालू महाराज ने यहां पर भव्य राधे-कृष्ण मन्दिर का निमार्ण करवाया है।
सुमित्रा नंदन पन्त जी की कुटी "नक्षत्र" यंही है जंहा रह कर उन्होंने महान रचनाएँ लिखीं |
माँ गंगा की पावन धारा से विभूषित है यह नगरी और यंही बाबा हौदेश्वर नाथ जी से माँ गंगा का नाम जान्हवी पड़ा |
भगवान राम जी के चरण का स्पर्श इसी जिले को नसीब हुआ है |
आवंला उत्पादन में हम ही सबसे आगे हैं पूरे भारत में |
बहुत कुछ है जिनका मैने यहां पर जिक्र नही किया है फिर भी कितना कुछ है जिसके लिए हम कह सकते है प्रतापगढ़ जिले के वासी है
फिर हम क्यो खुद को किसी नीचे महसूस करें जहां भी हो गर्व से कहो हम प्रतापगढ़ जिले के है।
" मन के जीते जीत है मन के हारे हार "
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प्रतापगढ़ की छवि धूमिल न होने पाए ......
‘प्रतापगढ़’ प्रमुखतया शुद्ध अवधीभाषी इलाका है. इसका वर्तमान नामकरण जिन ‘राजा’ प्रताप बहादुर पर हुआ है उन्हें क्षेत्र की जनता (प्रजा) ‘परताब बहादुर’ कहती थी. अंग्रेज बहुत बुद्धिमान थे और वे अपने व्यापक हितों के खातिर स्थानीयता को तवज्ज़ो देते थे. उन्होंने इसीलिए नाम ‘परताबगढ़’ (Partabgarh) और इसका संक्षिप्तीकरण ‘पीबीएच’ (PBH) के रूप में किया जो रेलवे और राजपत्र सहित समस्त सरकारी लिखा-पढ़ी व आम जन व्यवहार में आज भी प्रचलित है. इलाके में खड़ी बोली का प्रादुर्भाव होने पर यह ‘प्रतापगढ़’ हो गया है जो कालान्तर में ‘परताबगढ़’ से शुद्ध हुए ‘परतापगढ़’ का परिमार्जित रूप है.
यह इसी नहीं, हर जिले के लिए दुर्योग है कि आज की नवजवान पीढ़ी को अपने जिले का सही और तथ्यपरक इतिहास तो छोड़िए, भूगोल और उसकी सरहद(सीमाएँ) तक नहीं मालूम होती हैं, फिर चाहे भले ही ‘दुनिया उसकी मुट्ठी में’ क्यों न हो!
रही बात अर्थ की तो, अवधी में ‘परताब’ का जो निहितार्थ (Dignity, Glory, Splendour, majesty, spirit, Energy, Brilliance, Warmth, Valour, Heat या, Hreoism ) है वही ‘परताप’ अथवा प्रताप का भी है, अलबत्ता ‘पर-ताप’ होने पर इसके मायने बदल जाएँगे |