‘प्रतापगढ़’ प्रमुखतया शुद्ध अवधीभाषी इलाका है. इसका वर्तमान नामकरण जिन ‘राजा’ प्रताप बहादुर पर हुआ है उन्हें क्षेत्र की जनता (प्रजा) ‘परताब बहादुर’ कहती थी. अंग्रेज बहुत बुद्धिमान थे और वे अपने व्यापक हितों के खातिर स्थानीयता को तवज्ज़ो देते थे. उन्होंने इसीलिए नाम ‘परताबगढ़’ (Partabgarh) और इसका संक्षिप्तीकरण ‘पीबीएच’ (PBH) के रूप में किया जो रेलवे और राजपत्र सहित समस्त सरकारी लिखा-पढ़ी व आम जन व्यवहार में आज भी प्रचलित है. इलाके में खड़ी बोली का प्रादुर्भाव होने पर यह ‘प्रतापगढ़’ हो गया है जो कालान्तर में ‘परताबगढ़’ से शुद्ध हुए ‘परतापगढ़’ का परिमार्जित रूप है.
यह इसी नहीं, हर जिले के लिए दुर्योग है कि आज की नवजवान पीढ़ी को अपने जिले का सही और तथ्यपरक इतिहास तो छोड़िए, भूगोल और उसकी सरहद(सीमाएँ) तक नहीं मालूम होती हैं, फिर चाहे भले ही ‘दुनिया उसकी मुट्ठी में’ क्यों न हो!
रही बात अर्थ की तो, अवधी में ‘परताब’ का जो निहितार्थ (Dignity, Glory, Splendour, majesty, spirit, Energy, Brilliance, Warmth, Valour, Heat या, Hreoism ) है वही ‘परताप’ अथवा प्रताप का भी है, अलबत्ता ‘पर-ताप’ होने पर इसके मायने बदल जाएँगे