बरेली जनपद 26.0 अंक्षाश तथा 78.0 देशान्तर में स्थित है। यह जनपद पहले पांचाल का भाग था। पूर्व में गोमती नदी, पश्चिम में यमुना, दक्षिण में चम्बल तथा उत्तर में हिमालय पर्वतमाला उसकी दिशावर्ती सीमायें है।
पांचाल वैदिक संस्कृति का उच्च केन्द्र माना जाता था। यहां के गुणी देशभर में प्रसिद्ध थे। बरेली भूगर्भ विज्ञान के दृष्टिकोण से भी अति उत्तम है। पांचाल के अवषेश रामपुर गांव के निकट प्राप्त हुये है। गुप्ता युग से पहले के 500 हजार सिक्के अहिच्चत्र से प्राप्त हुए है। हैराकोटा की मूर्तियों में भी यह जनपद आगे रहा है। 16वीं शताब्दी में पांचाल 6 महाजनपदों में से एक था।
12वीं शताब्दी के मध्य तक क्षत्रियों ने अपने को वहां पर बसा लिया। बरेली जिला 16वीं शताब्दी में स्थापित किया गया होगा। यह कहा जाता है कि जगतसिंह नाम के क्षत्रिय ने जगत पुर नाम का एक गांव स्थापित किया। उनके दो पुत्र थे बांस देव, बारेल देव। दोनों भाइयों नें 1537 में बरेली जिले को बसाया और तब इसका नाम बास बरेली रखा गया। बरेली के एक मोहल्ले का नाम आज भी जगतपुर है। बरेली के बांस देव की मृत्यु के पश्चात बरेली को मुगल सम्राज्य में सम्मलित कर लिया गया।
इस जनपद का चर्तुमुखी विकास पूर्ण जोर शोर से 1657 में शुरू हुआ। उस समय बरेली का फौजदार मुक्रन्द राय था। उन्होने अनेको मोहल्लो जैसे बिहारीपुर, मल्कपुर, काजीटोला आदि की संस्थापना की। उन्होने जामा मस्जिद और किला पुलिस स्टेशन पर एक विशाल दुर्ग का निर्माण करवाया।
बरेली में स्वतंत्रता संग्राम की शुरूवात 14 मई 1857 को हुई। बरेली के स्थानीय निवासियों विरोध में कई प्रदर्शन किये और कोतवाली के सामने कागजात इत्यादि जला दिये।
इण्डियन नेशनल कांग्रेस की बरेली में खिलाफत आन्दोलन के दौरान संस्थापना हुई। गांधी जी ने उसी समय सर्वप्रथम बरेली में आगमन किया। इस जिले में सिविना डिसओबिडियन्स आन्दोलन का प्रारम्भ 26 जनवरी 1930 में हुआ। कांग्रेस के एक अधिवेशन में पं जवाहर लाल नेहरू, एम एन राय, पुरूषोत्तम राय आदि ने भाग लिया। भारत छोड़ो आन्दोलन से सम्बन्धित भी कई जुलूस निकाले गये और करीब 200 लोगों को गिरफतार किया गया।