जोधपुर के बारे में बिलकुल अनूठी और दिलचस्प बातों का पिटारा...
-दो ब्रेड के बीच में मिर्चीबड़ा दबा कर खाना यहाँ का ख़ास ब्रेकफास्ट माना जाता है.
-मिठाई की दुकान पर खड़े खड़े आधा किलो गुलाब जामुन खाते जोधपुर में सहज ही किसी को देखा जा सकता है. -
-गर्मी से बचाव के लिए चूने में नील मिलाकर पोतने का रिवाज़ सिर्फ और सिर्फ जोधपुर में ही है.
-यहाँ की परंपरा में गालियोंको घी की नालियां कहा जाता है. तभी तो गाली देने पर यहाँ का बाशिंदा नाराज़ नहीं होता, क्योंकि गाली भी इतने मीठे तरीके से दी जाती है,
उसका असर नगण्य हो जाता है.
-बेंतमार गणगौर जैसा त्योहार सिर्फ जोधपुर में ही मनाया जाता है, जिसमें पूरी रात सड़कों पर सिर्फ महिलाओं की हुकूमत चलती है
-दाल-बाटी, चूरमा के लिए जोधपुर में कहा जाता है,दालहँसती हुई, चूरमा रोता हुआ और बाटी खिलखिल होनी चाहिए. यानि दाल चटपटी मसालेदार, चूरमा ढेर सारे घी वाला और बाटी सिककर तिड़की हुई होनीचाहिए.
-के. पी. यानि खांचा पोलिटिक्स की ट्रिक ख़ास जोधपुरी अंदाज़ है, जिसमे भीड़ से किसी भी आदमी को सबके सामने चुपचाप कोने मेंले जाकर सिर्फ इतना पूछा जाता है – कैसे हो आप.
- जोधपुरियंस काख़ास जुमला है ‘काई सा’ और ‘किकर’. इसका अर्थ है कैसे हैं? इन दिनों क्या चल रहा है,‘चेपी राखो’ इस शब्द का जोधपुर में मतलब है, जो काम कार रहे हो उसमें जुटे रहो.
-मिर्ची बड़ा, मावे की कचौरीऔर मेहरानगढ़ पर हर जोधपुर वासी को गर्व है..
-पानी की सप्लाई होते ही घर के आँगन को धोने का रिवाज़ जोधपुर में ही है. -
-गली के नुक्कड़ पर पत्थर कीखुली कुण्डी जोधपुर में लगभग हर जगह मिल जायेगी, जहां घर का बचा खुचा बासी भोजन गायों के लिए डाला जाता है.
-किसी भी काम के लिए सीधे मना करने की आदत किसी भी जोधपुरियन की नहीं होती. बहाने बना कर टाल देंगे, मगर सीधे मना नहीं करेंगे,जोधपुर में इस शैली के लिए ख़ास शब्द है- गोली देना.
- फास्ट फ़ूड के नाम पर पिज्ज़ा- बर्गर के मुकाबले मिर्ची बड़ा और प्याज की कचौरी पसंद की जाती है.
-सड़क पर जाम में फंसने के बजाय जोधपुरी लोग पतली गलियों से निकल जाना पसंद करते हैं.
- घंटा घर जोधपुर में ऐसी जगह है, जहां पैदा होते बच्चे के सामान से लेकर अंतिम संस्कार तक का सारा सामान मिल जाता है |