श्री माॅ हिंगलाज माता की स्थापना का इतिहास
प्रातः स्मरणीय माॅ हिंगलाज का ”उपषक्ति पीठ“ बारना नदी नर्मदापुराण में इसका नाम वरूणा सहायक नदी के रूप में उल्लेख हैं के उत्तरतट पर खाकी अखाडा के सिद्ध महन्तो की तपस्थली के समीप स्थित है लेकिन महन्त परम्परा के द्वारा स्थापना इतिहास की पुष्टि करती है खाकी अखाडा के महन्त गण सोरोजी की तीर्थयात्रा पर जाते रहे है सोरोजी के पण्डा श्री प्रेमनारायण जी की पण्डावही में इन महन्तों के नाम लिखे है। उनकी पण्डावही के अनुसार ब्रह्मलीनश्री श्री 108 श्री महन्त तुलसीदास जी महन्त परम्परा की बारहवीं पीढी के महन्त हुये श्री महन्त जी बाडी मण्डल के महामण्डलेष्वर रहे है।आप तूल नाम से कविता करते थे।तुलसीमानस षतक एवं नर्मदा चालीसा आपकी प्रसिद्ध रचनाएॅ है। मंहत जी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ,समाजसेवी,संगीतकार,इतिहासविद् एवं अध्ययनषील व्यक्तित्व के धनी थे।खाकी अखाडा के पूर्व संत महन्त चमत्कारी एवं तपस्वी थेै। तभी तो मंदिर के लिए भोपाल रियासत की नबाब बेगम सिंकदर जहाॅ कार्यकाल सन् 1844 ई.षाहजहाॅ बेगम का कार्यकाल सन् 1868 ई.ने जागीरे बक्षी।श्री खाकी अखाडा की मंहत परम्परा में चैथी पीढी के मंहत श्री भगवान दास जी महाराज हिंगलाज माॅ को अग्नि रूप में लेकर आये । वर्तमान में श्री रामजानकी मंदिर के पाष्र्व में जो धूनी स्थान है वह स्थापना से 150 वड्र्ढ तक अखण्ड धूनी चैतन्य रहने का स्थान हेेै यह अग्नि ज्योति रूप में मंहत जी बलूचिस्तान जो माॅ हिंगलाज का मूल षक्तिपीठ हैं से लेकर आये थे । श्री मंहत भगवानदास जी श्री राम जी के उपासक थे लेकिन माॅ जगदम्बा के अनन्य भक्त भी थे। उनके मन में माॅ हिंगलाज षक्तिपीठ के दर्षन की लालसा उठी और अपने दो षिष्यों को साथ लेकर पदयात्रा पर निकल पडे मंहत जी 2 वड्र्ढ तक पदयात्रा करते रहे अचानक मंहत जी को संग्रहणी का रोग हो गया लेकिन अपनी आराध्य के दर्षनो की लालसा में पदयात्रा चलती रही एक दिन मंहत जी अषक्त होकर बैठ गए और माॅ से प्रार्थना करने लगे कि माॅ आपके दर्षनो के बगैर मेैं वापिस नहीं जाउगा चाहे मुझे ष्षरीर त्यागना पडे इसकी मुझे चिन्ता नही ।एक माह तक ष्षरीरिक अस्वस्थता की स्थिति में जंगली कंद मूल फल का आहार लेकर अपने संकल्प पर अटल रहे कहते है कि भगवान भक्तों की कठिन से कठिन परीक्षा लेते है वड्र्ढा के कारण एक दिन धूनी भी षांत हो गई । जिस दिन धूनी ष्षांत हुई दूसरे दिन प्रातःकाल एक भील कन्या उस रास्ते से आग लेकर निकली और बाबा से पूछने लगी कि बाबा आपकी धूनी में तो आग ही नही आप क्यो बैटे हो । बाबा ने अपनी दषा उस कन्या को सुनाई।कन्या उन्हे आग देकर अपने मार्ग पर आगे बढकर अन्तघ्र्यान हो गई।मंहत जी ने उस आग से धूनी चैतन्य की ओर मन ही मन माॅ हिंगलाज से प्रार्थना करने लगे।रात्रि के अन्तिम प्रहर में उनको स्वप्न आया कि भक्त स्थान वापिस जाओ मैने तुम्हे दर्षन दे दिये हैं।मेरे द्वारा दी गई अग्नि को अखण्ड धूनी के रूप में स्थापित कर हिंगलाज मंदिर के रूप में स्थापित कर दो । इस प्रकार बाडी नगर में माॅ हिंगलाज देवी की स्थापना हुई।
आचार्य जी माॅ हिंगलाज संस्कृत विद्यालय बाड़ी जिला-रायसेन म.प्र .9977267822
माॅ का चमत्कार
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हिंगलाज माॅ के चमत्कारों की घटनाएॅ तो अनेक है पर एक घटना का संबंध खाकी अखाडा से जुडा है भोपाल रियासत की बेगम कुदसिया (1819से)के कार्यकाल का है खाकी अखाडे में 50-60 साधू संत स्थायी रूप से रहते थे। ष्उनके भोजन की व्यवस्था मंहत जी की रम्मत धर्मसभा की आय से होती थी।माॅ हिंगलाज के दर्षनार्थिंयो एवं दानदाताओं का इसमें सहयोग रहता था। यह घटना सन् 1820-25 के आसपास की है उस समय नबाब बेगम का बाडी केम्प था।श्री रामजानकी मंदिर खाकी अखाडे में प्रातः सुप्रभात आरती जागिये कृपानिधान एवं सांयम्कालीन आरती भी गौरीगायन कौन दिषा से आये पवनसुत तीव्र ध्वनि षंख,घंटा,घडियाल एवं नौबत बजाने के साथ होती थी। बेगम साहिबा ने जब यह ष्षोर सुबह-षाम सुना तो बहुत ही क्रोधित हुई ओर मंहत जी को हुकम भेजा कि जब तक हमारा केम्प यहाॅ है षोर षराबा नही होना चाहिये हमारी नमाज में खलल पडता है।मंहत जी ने हुक्म मानने से इन्कार कर दिया और कहा की भगवान की आरती इसी प्रकार होती रहेगी उसका परिणाम कुछ भी हो। मंहतजी का इन्कार सुनकर बेगम बहुत ही क्रोधित हुई बेगम पहले ही मंहतजी के चमत्कारों एवं साधना के बारे मे सुन चुकी थी इसलिए उसने परीक्षा लेने के लिए एक थाल में मांस रखकर कपडे से ढककर चार प्यादों सेवक के साथ भोग लगाने भेज दिया जैसे ही प्यादे सेवक मंदिर परिसर के अन्दर आयूे मंहत जी ने एक सेवक भेज कर उसे मुख्यद्वार पर ही रूकवा दिया और एक षिष्य को आज्ञा दी कि अखण्डधूनी के पास जो कमण्डल रखा है उसे लेकर थाल पर जल छिडक दो और कह दो कि भोग लग गया हैं बेगम साहिबा को भोग प्रसाद प्रस्तुत कर दो कपडा बेगम के सामने ही हटाना प्यादे वह थाल लेकर वापस बेगम के पास केम्प में पहूचे और बेगम के सामने थाल रखकर सब किस्सा बयान किया जब बेगम ने थाल का कपडा हटाया तो उसमें मांस के स्थान पर प्रसाद स्वरूप पाॅच प्रकार की मिठाईयाॅ मिली। बेगम को आष्चर्य हुआ और महन्त जी से मिलने मंदिर पहुची और कहा कि महाराज मैं आपकी खिदमत करना चाहती हूॅ आप मुझे हुकुम दीजिये आपकी क्या खिदमत करूॅ फिर बेगम ने मंदिर के नाम जागीर बक्ष दी । बाडी नगर के वृद्धजनों में यह घटना माॅ हिंगलाज की चर्चा के संदर्भ में कही जाती है।माॅ हिंगलाज का यह स्थान प्राकृतिक सौंदर्य के मध्य स्थित हैं। वहाॅ पहुचकर जैसे ही माॅ की परिक्रमा कर आप दण्डवत करेगे ,वैसे ही मन में अपूर्व षांति का अनुभव प्राप्त होगा।
।।मंदिर परिसर में दर्षनीय स्थल।।
मध्यप्रदेष के नेषनल हाइवे नं0-12 पर जिला-रायसेन के बाडी नगर में स्थित माॅ हिंगलाज मंदिर परिसर में दर्षनीय स्थलः- 1.प्राचीन माॅ ंिहंगलाज मंदिर-मंदिर के प्रमुख प्रवेष द्वार से प्रवेष करते ही प्रथम माॅ
हिंगलाज का प्राचीन माॅ हिंगलाज मंदिर का दर्षन होगा। यह मंदिर लगभग 1800 ई0 के समय का बना हुआ है मंदिर का षिखर गौडषैली का बना हुआ है। माॅ की मूर्ति पराम्बा षक्ति के 51षक्ति उपपीठ के रूप में स्थापित हैं।सन् 2005 मे टस्ट श्री रामजानकी एवं माॅ हिंगलाज मंदिर तथा जनसहयोग से मंदिर का जीर्णो