आज भारत में गोव एवं गोवंश, गोमांस का व्यापार एवं निर्यात एक बड़ा उद्योग बन गया है। गोमांस निर्यात निरंतर बढ़ रहा है। फलस्वरूप, देश में पशुधन निरंतर कम हो जा रहा है। 500 वर्षो के मुस्लिम शासन तथा 150 वर्षो के अंग्रेजी शासन काल में जितनी गो हत्या नही होती थी उससे सैकड़ो गुना अधिक गो हत्या आज स्वतंत्र भारत में हो रही है। गावंश के मांस निर्यात व्यवसाय को सरकार बढ़ावा दे रही है। कत्लखानों की संख्या निरंतर बढ़ रही है। एक मिनट में 28-30 गायों की हत्या की जा रही है। आज अकेले गो मांस का लगभग 10 हजार टन से अधिक का निर्यात हो रहा है। 18 यांत्रिक कत्लखानों में दिन - रात 24 घंटे गोवंश की हत्या की जा रही है। यदि पारंपरिक कारखानों की संख्या इकट्ठे जोड़ दी जाय तो इस प्रकार 36 हजार से अधिक कत्लखानें गोवंश के हत्या हेतु देश्र में चलाये जा रहें और नये कत्लखाने खोलने हेतु प्रस्तावित है, योजना बन रही है।
मानवीय उच्चतम न्यायालय के स्पष्ट निर्देश के बावजूद पश्चिम बंगाल में बकरीद के अवसर पर लाखों गायों की कुर्बानी दी जाती है, उनका वध किया जाता है। प्रतिदिन बिहार व बंगाल के रास्ते बांग्लादेश को हजारों की संख्या में गाय एवं गोवंश की तस्करी हो रही है। यही स्थिती अन्य तमाम राज्यों की भी है। इस प्रकार भारत में गाय एवं गोवंश की संख्या निरंतर सुनियोजित ढंग से कम की जा रही है। उनकी नस्ल को मिटाया जा रहा है।