एक तू एक तू नजर आये
एक रस बनकर अनेको में एक तू नजर आये
विविधता में मिलती एकता
एकता में विविधता समाये
एक तू , एक तू ,
एक तू नजर आये
वहीँ एक से जगत बना बहुरंगी
और विविध रूपों से बन गया बहुरूपी
कहेने को तो पांच तत्व
घुले मिले एक दूजे में ऐसे "अकार"
जैसे काष्ट में अग्नि समाये
एक तू, एक तू
एक तू नजर आये..
रहेता है हंमेशा मेरे साथ वह
कभी छत बनकर कभी छाँव बनकर
चलने का मेरा होंसला बढाता है वह
कभी दोस्त बनकर कभी सख्त बनकर
अँधेरे मेरे रोशन करता, वह चिराग हाथ में लिए चलता
डसता अकेलापन “अकार”, बतियाता वह हमसफ़र
थकान परवश बनाती जब, चलता है उठाके मुझे
रहेता है हंमेशा साथ वह.......
हर आंधी तूफ़ान का वह आशियाना बना देता
चलती हवाओ की फानस बना देता
इस ज्योति को अभय दान देता
रहेता है हंमेशा साथ वह......
कभी कभी भगवान् को भी भक्तों से काम पड़े ।
जाना था गंगा पार प्रभु केवट की नाव चढ़े ॥
अवध छोड़ प्रभु वन को धाये,
सिया राम लखन गंगा तट आये ।
केवट मन ही मन हर्षाये,
घर बैठे प्रभु दर्शन पाए ।
हाथ जोड़ कर प्रभु के आगे केवट मगन खड़े ॥
प्रभु बोले तुम नाव चलाओ,
अरे पार हमे केवट पहुँचाओ ।
केवट बोला सुनो हमारी,
चरण धुल की माया भारी ।
मैं गरीब नैया मेरी नारी ना होए पड़े ॥
चली नाव गंगा की धारा,
सिया राम लखन को पार उतारा ।
प्रभु देने लगे नाव उतराई,
केवट कहे नहीं रागुराई ।
पार किया मैंने तुमको, अब तू मोहे पार करे ॥
केवट दोड़ के जल भर ले आया,
चरण धोये चरणामृत पाया ।
वेद ग्रन्थ जिन के गुण गाये,
केवट उनको नाव चढ़ाए ।
बरसे फूल गगन से ऐसे,
भक्त के भाग्य जगे ॥